डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
**************************************
लगभग २ साल से वर्षा न होने के कारण असम के सभी चाय बगानों में सूखे की स्थिति बनी हुई थी। शाह जी इसी बात को लेकर बहुत चिंतित थे, क्योंकि उनका बागान भी इससे प्रभावित हो रहा था। कहते हैं जब किसी को अपनी समस्याओं का हल नहीं मिलता है तो वह अंत में भगवान की शरण में चला जाता है। शाह जी भी वर्षा के लिए पुजारियों की सलाह पर मंदिर में जाकर पूजा-पाठ करवाने लगे।
पूजा-पाठ कराते-कराते १ सप्ताह गुजर गया, पर बारिश का नामो-निशान तक ना दिखा।अब शाह जी बड़े दुखी हुए। कर्मचारियों के सामने भी उन्हें शर्मिंदगी-सी महसूस होने लगी।
एक दिन हताश होकर मंदिर में चुपचाप बैठ मानो ऊपर वाले से शिकायत कर रहे हों कि, इतने में एक पर्यावरणविद युवक उधर से गुजरते हुए उन्हें दो पल निहारता रहा। फिर बोला-“दादा जी क्या बात है, आप इतने उदास यहां क्यों बैठे हैं ?”
गंभीर स्वर में वह बोले,-“कुछ नहीं बेटा।”
“अरे दादा जी, बताइए तो क्या बात है ?”
…फिर उससे सब कुछ मन की बात कही। यह भी बताया कि, अब उनके पास उर्वरक खरीदने तक के पैसे नहीं।
युवक भी दुखी मन से सब कुछ सुनता रहा। फिर बोला-“एक बात कहूं, हम लोगों ने आज प्रकृति का दोहन कर उसका विनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहां एक तरफ हम सैकड़ों पेड़ों को लगाकर और उनको काटकर फिर १ पेड़ लगाकर ढकोसला कर रहे हैं, दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी मशीनों, कारखानों से गंदा धुआं फैलाकर प्रकृति को प्रदूषित कर रहे हैं। आप मंदिर में बैठ भगवान से शिकायत करने की अपेक्षा यदि सभी बागान के मालिकों की सभा का आयोजन कर एक संकल्प लें कि, हर व्यक्ति एक दिन में कम-से-कम १ पेड़ अवश्य लगाए तो यकीन मानिए १ ही वर्ष में हम प्रकृति का नया रूप देख पाएंगे, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियों को इस तरह प्रकृति का प्रकोप नहीं सहना पडेगा और हमारे कर्मों से आज जो प्रकृति रूठी है, वह भी खुश हो जाएगी। फिर बागानों मे हरियाली ही हरियाली छा जाएगी…।”