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सतरंगी सुरों के ईर्द-गिर्द रहा जीवन

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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किशोर कुमार जन्म जयंती विशेष…

एक फंटूश चल पड़ा शिकारी बन, के.एल.सहगल से प्रभावित ‘दुःखी मन मेरे, यहाँ नहीं रहना’ गाते हुए। वह दौर फिल्म जगत के लिए स्वर्णिम वर्षों में रहा। सफलता के लिए जब एक से एक महारथियों, मशहूर नामचीन कलाकारों और दिग्गज अभिनेताओं के बीच तब दादा मुनि यानि अशोक कुमार ने छोटे भाई अभास कुमार गांगुली यानि किशोर कुमार को अभिनेता बनाना चाहते थे। वहीं किशोर दा ने गायन में कुछ ऐसा कमाल दिखाया कि, सब चकित रह जाते थे। अभिनेता के रूप में वह हिंदी फिल्म ‘हाफ टिकट’ में वह छोटा बच्चा बन दर्शकों को हँसाता हुआ चेहरा बने, वह ‘चलती का नाम गाड़ी’ में लोगों को अपने भाईयों के साथ बम्बई (मुंबई) की सड़कों पर निकल कर कहते रहे कि ‘बाबू समझो इशारा, हार्न पुकारे पम पम पम..।’
खण्डवा (मध्यप्रदेश) में ४ अगस्त को जन्मे किशोर, कुंजीलाल गांगुली की संतान थे। सबसे बड़े भाई अभिनेता अशोक कुमार मुंबई नगरी में फिल्मों के सितारा कलाकार बन चुके थे, वहीं किशोर दा खण्डवा में दूध-जलेबी खाते-खाते बड़े हो रहे थे। पिता ने बेटे किशोर दा को इन्दौर भेज दिया। इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में वह पढ़ाई कर रहे थे। वह अपनी मस्ती में मस्त-मौला दुनिया से बेखबर कालेज जीवन का आंनद ले रहे थे। पढ़ाई के प्रति उनकी कोई खास रुचि नहीं थी। वह संगीत, गाना-बजाना मित्र मण्डली को इकट्ठा कर शुरू हो जाते थे। वह कालेज में पढ़ाई के बाद परिसर के मैदान में इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर सुर, ताल व संगीत की लहरियों में जीवन में मंजिल की तलाश में उंमगता व आंनद लेते थे। कालेज की कैन्टीन में जाकर जलेबी, समोसे, कचोरी और पोहे खुद भी खाते और दोस्तों को भी खिलाते थे। वहाँ काका की कैन्टीन इतनी ज्यादा मशहूर हो गई कि, किशोर कुमार हमेशा उसे याद करते थे। उन्हीं यादों में काका किशोर से बोलते-“अरे मेरी उधारी के पैसे दे दो।” उस समय १०-२० पैसे की उधारी भी बहुत बड़ी होती थी। उधारी के लिए काका बार-बार उन्हें बोलते-“ला मेरे पैसे किशोर।” उसी कैन्टीन में टेबल, गिलास व चम्मच लेकर बजा-बजाकर गाते और ‘पाँच रुपया बारहा आना’ की धुन निकालते। आगे चलकर इस गीत-संगीत को अपनी फिल्म में भी उन्होंने परदे पर दिखाया, जो बहुत ही सुपरहिट गीत बना। फिर कालेज की पढ़ाई को अधूरी छोड़ कर वह माया नगरी चले गए, जहां शुरूआत में उन्होंने ८१ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया, पर असली पड़ाव अभिनय नहीं था। वह तो संगीत-गायन के क्षेत्र में आगे आना चाहते थे। एस.डी. बर्मन ने उन्हें जब मौका दिया तो उनके मार्गदर्शन में ही कहीं सफल गाने गाए और उसके बाद उनके सुपुत्र आर.डी. बर्मन (पंचम दा) के साथ भी लगातार वर्षों तक सफल दर सफल फिल्में व उनके गाने भी भीड़ से हट कर थे, जिसकी लम्बी फेहरिस्त है। तभी तो २७०० से भी अधिक गाने गाए, जो कीर्तिमान ही है।
किशोर दा जैसे कुछ हरफनमौला कलाकारों का जीवन उनकी सतरंगी कहानी के साथ अतरंगी भी होता है। सब-कुछ होने के बाद भी कभी-कभी जिंदगी में कुछ ख़ालीपन रह ही जाता है। गायन, अभिनय, निर्देशक और गीतकार किशोर कुमार ने ४ शादी की थी। जब किशोर दा की चौथी शादी हुई, तब उनका बड़ा बेटा अमित व लीला चंदावरकर की उम्र में २ साल का फर्क था। किशोर कुमार ने बच्चों की परवरिश में कोई कोताही नहीं बरती। तभी तो अमित कुमार भी स्थापित गायक बने, क्योंकि किशोर दा ने उंगली पकड़कर कहा ‘आ चल के तले कहीं दूर चले एक ऐसे गगन के तले, जहां गम भी ना हो बस प्यार ही प्यार पले…।’
लता, आशा व किशोर की सदाबहार जोड़ी उस समय बहुत सफल थी, जिनके गीत आज भी कर्णप्रिय हैं। दर्द भरे गाने में ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा…’ हो या फिर ‘मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया’ या फिर शराबी फिल्म का गीत ‘मंजिलें अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह…’ इन गानों में किशोर दा ने बहुत सारी बातें कही।

किशोर दा ने आपातकाल का वह प्रतिबंध भी झेला, जब तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने किशोर कुमार के गीतों को आकाशवाणी में प्रतिबंधित कर दिया था। उस हरफनमौला कलाकार ने इसकी परवाह नहीं की और आगे बढ़ते रहे एवं कहते रहे कि ‘दीए जलते हैं, फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से दुनिया में दोस्त मिलते हैं।’ लगातार गायकी के क्षेत्र में बिना सीखे सिर्फ आत्मचिंतन से कुछ नया करने के अंदाज ने ही उन्हें महान कलाकार बना दिया। ‘आराधना’ के बाद राजेश खन्ना व उसके बाद अमिताभ बच्चन के लिए भी किशोर दा बहुमूल्य रत्न थे। उसी हरदिल अजीज कलाकार की ९५ वीं जंयती पर सिर्फ एक बात याद आ रही है कि, अब दुनिया में कोई और किशोर कुमार नहीं आएगा, जो अपनी जन्मभूमि का प्यारा होगा, जो अपनी शिक्षा स्थली से प्रभावित होगा, जो अपनी कर्मभूमि पर ७ सुरों के जादू को बिखेरेगा। ऐसे बिरले व्यक्ति बहुत कम होते हैं, जो गीत, संगीत व गायकी में अपना अलग अंदाज छोड़ जाए। ऐसे किशोर दा को सुरों के चाहने वाले कभी भी नहीं भुला पाएंगे। उनके जन्मदिन पर हम सभी उनके गाने सुनें और गुनगुनाएं, यही उन्हें तोहफा होगा, क्योंकि किशोर दा का जीवन सतरंगी सुरों के ईर्द-गिर्द ही रहा।