कवि सम्मेलन….
मंडला(मप्र)।
राजनीति जब डगमगाती है,तब साहित्य उसे संभाल लेता है। साहित्य की इस प्रासंगिकता को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर बखूबी समझते थे। शायद,यही कारण था कि उन्होंने सौंदर्य शास्त्र की अनुपम भेंट ‘उर्वशी’ का सृजन करते हुए भी,राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत ओजस्वी कविताओं का सृजन खूब जमकर किया।समकालीन कविताएं दिनकर के युगधर्म,हुंकार और भूचाल से प्रभावित हैं।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका पर आयोजित कवि सम्मेलन में संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। यह सम्मेलन ‘समकालीन कविता में दिनकर की प्रासंगिकता’ विषय पर ऑनलाइन था।
विशिष्ट अतिथि मप्र के स्वनामधन्य रचनाकार प्रो. (डॉ.)शरद नारायण खरे (मप्र)ने कहा कि,साठोत्तरी कविता और समकालीन कविता को एक मान लेना गलत है। सच तो यह है कि समकालीन कविता वर्तमान का काव्य आंदोलन है, जिसमें अहम् भूमिका निभाई दिनकर ने। वास्तव में समकालीन कविता में जनवादी चेतना व आम आदमी की समस्याओं व परेशानियों को अभिव्यक्ति दी गई।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि आराधना प्रसाद और अध्यक्षता निभा रहे संपादक संतोष मालवीय (राजगढ़) ने दिनकर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,पुरोधा की भूमिका का निर्वाह किया है राष्ट्रकवि दिनकर ने।
मुख्य वक्ता अपूर्व कुमार (वैशाली)ने कहा कि, दिनकर की रचनाएं जितनी अनपढ़,मजदूर- किसानों को भाती थी,उतनी ही किसी कठिन विषय के शोध के छात्रों को भी। रामधारी सिंह दिनकर वैसे रत्न कवियों में से हैं,जिन्होंने न केवल समकालीन कविता का प्रादुर्भाव काल देखा,बल्कि समकालीन कविता के उज्जवल भविष्य का भी सहज अंदाजा लगा लिया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. कुंवर नारायण सिंह मार्तण्ड (कोलकाता) ने दिनकर की कई ओजस्वी कविताओं का पाठ करने के बाद गीत भी प्रस्तुत किया। इस सम्मेलन का आरंभ मुख्य अतिथि आराधना प्रसाद की मर्मस्पर्शी ग़ज़लों से हुआ- ‘औरों के भी ग़म उठाये ज़िंदगी,ख़ुद को भी ख़ुद से मिलाये ज़िंदगी,दीजिये मुस्कान इक मज़लूम को, तब कहीं ये मुस्कुराये जिंदगी॥’
हरिनारायण सिंह,कुँवर वीर सिंह,ऋचा वर्मा, अलका अस्थाना,रामनारायण यादव,राज प्रिया रानी और अंजू भारती आदि ने भी समकालीन कविताओं का पाठ किया। आयोजन में दुर्गेश मोहन,सुनील कुमार उपाध्याय,कुमारी मेनका,अपूर्व कुमार,गोरख प्रसाद मस्ताना,विमलेश कुमार,मंजू कुमारी आदि की भागीदारी रही।