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सर्वव्यापी महामारियाँ:गंभीर चिंतन जरूरी

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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हम सब ढीले पड़ रहे हैं,मिलना-जुलना सब-कुछ चल रहा है। हम सब सोच रहे हैं, तीसरा डेल्टा कोविड नहीं आया है,या अभी देर है। तरह-तरह की अटकलें। चिकित्सक और वैज्ञानिक भी अब तीसरी लहर नहीं चाहते हैं,पर भीतर चिंतित भी तो हैं।
इतिहास गवाह है कि,संसार में सदियों से कभी-कभी सर्वव्यापी महामारियाँ होती रही हैं,जिसके कारण गाँव के गाँव,कस्बे-शहर समाप्त हो गए। मानव व प्राणी हाथ मलते रह गए और सौ वर्षों बाद इस कोविड की विश्वव्यापी महामारी के भयानक परिणाम को इस काल में हम सब झेल रहे हैं। जनजीवन बार बार ठप्प-सा हो रहा है। इसका विश्लेषण करना अति आवश्यक है कि, आखिर क्यों होती हैं ऐसी महामारियाँ। हम मानवों ने वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की चेतावनियों के वावजूद भी उनकी बातों पर कभी भी सही ध्यान नहीं दिया। लापरवाही भी तो मानव की प्रकृति है। इसके कारणों को समझने के लिए अनेक विश्लेषण और शोधों से विश्वव्यापी महामारियों के यह प्रमुख कारण हैं।

भूमंडलीकरण

आजकल लोग जैसे बस और ट्रेन पकड़ कर यात्रा करते हैं,उसी तरह अभी हवाई यात्रा से कुछ घंटों में एक शहर से दूसरे शहर,एक देश से दूसरे देश पहुँच जाते हैं। हवाई यात्राएं बहुत बढ़ गई है। यह वर्ष १९९० से धीरे-धीरे बढ़ रहा था,जो १ अरब से बढ़ कर २०१८ में ४.२ अरब हो गया। जो कोरोना विषाणु चीन में ही रह सकता था,वो तेजी से विश्व में फैलने लगा और इस तरह अन्य यात्राएं और हवाई यात्रा संक्रमण को बढ़ाने लगी। इसी तरह कोरोना ग्रसित बीमारियों के बचाव में परेशानियों का सामना करना भी बढ़ने लगा,क्योंकि संसार के लोग इस बीमारी से बिल्कुल अनभिज्ञ रहे।

शहरीकरण-

१९५० में संसार की २ तिहाई आबादी गांवों में रहती थी। ऐसा अनुमान है कि २०५० में ६६ प्रतिशत लोग शहरी वातावरण में रहेंगे। इसमें सबसे ज्यादा एशिया और अफ्रीका में शहरीकरण होगा। शहरों में ज्यादातर लोग घर,पानी,सफाई,शौच और सफाई,यात्रा के साधन,स्वास्थ्य के साधन के प्रबंध के लिए लगे रहते हैं। शहरीकरण का अर्थ है-संकरे, गंदगी भरी असुरक्षित जगहों में ज्यादा व्यक्तियों का रहना और संक्रमण इन परिस्थितियों में पनपता है।

जलवायु परिवर्तन-

जलवायु परिवर्तन की मानव जीवन में अहम भूमिका है। जीवन में भोजन,वायु,अति गर्मी और अति ठंडक का सामना करना पड़ता है।जलवायु परिवर्तन बीमारियों को फैलाने, बढ़ाने में कारगर होता है। इसमें बीमारी फैलाने वाले कीड़े और मच्छरों की अहम भूमिका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार २०३० से २०५० के समय जलवायु परिवर्तन से डेंगू और मलेरिया से मानव की मृत्यु दर में १ करोड़ से ज्यादा बढ़ोतरी होगी। जलवायु परिवर्तन के भीषण प्रकोप के कारण लोग जगह भी बदलते हैं,और भीड़ भरी जगहों में रहते हैं,या देश की सीमा भी पार करते हैं। इस तरह वाद-विवाद बढ़ते हैं,और शरणार्थी शिविर में भीड़ बढ़ती है,और फिर संक्रमण भी बढ़ते हैं।

मानव-जानवरों में संपर्क का बढ़ना-

जिस तरह मनुष्यों और जानवरों के बीच संबंध बढ़ रहें हैं,उनसे जानवरों में होने वाली बीमारियां भी बढ़ रही हैं। जब कीटाणु अपनी सीमा लाँघ कर मनुष्य के शरीर में जाता है, तो उसके बेहिसाब बढ़ने और तीव्रता की सीमा भयानक होती है।आबादी के अधिक बढ़ने पर और जंगली खाना, और पर्यावरण पर अतिक्रमण करने वाले मानव वैसे जानवरों के नजदीक जाते हैं,जिसका मानव से कभी संबंध नहीं था,पर इस तरह की हालत से कई महामारियाँ शुरू हो गईं।

ऐसा माना जाता है कि कोरोना की विश्वव्यापी महामारी का कारण चमगादड़ से आया है। जंगली जानवरों का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मनुष्यों को जानवरों की बीमारियों के संपर्क में ले जाता है, जो जानवरों से मानव,फिर मानव से मानव संपर्क से मिलता है,और इस तरह ऐसी महामारियाँ फैलने लगती हैं।

लोगों की लापरवाही

महामारियों के समय भी लोगों में सही जागरूकता की कमी और लापरवाही बहुत ही मंहगी पड़ती है। लोग समझते हैं कि,उन्हें संक्रमण नहीं होगा। तब वे सावधानी के उपायों की आवश्यकता को ना समझते हैं,ना सही से पालन करते हैं।

चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी-

स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाओं की कमी के संग कम संख्या से ही चिकित्सकों,नर्सों,सेवा कर्मियों को महामारी का बोझ सहना पड़ता है। अत: जनसंख्या अनुपात में चिकित्सक, नर्स,तकनीशियन,स्वास्थ्य कर्मियों की कमी महामारी की स्थिति संभालने की कोशिश में कमजोर पड़ती है।
इन सभी कारणों पर मानव को गहरा चिंतन मनन करना आवश्यक है कि,आगे ऐसी महामारियों की स्थितियों को आने से कैसे रोका जाए। अपना, अपने परिवार, समाज,देश को और संसार की अगली पीढ़ी को ऐसी आपदा से कैसे सुरक्षित रखा जाए,इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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