कुल पृष्ठ दर्शन : 279

You are currently viewing सामन्जस्य से ही परिवार में शान्ति

सामन्जस्य से ही परिवार में शान्ति

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************

‘दो औरतें पुरुष के जीवन में रहती हैं शामिल।
पुरुष कैसे सामन्जस्य बैठाए, यही है मुश्किल।’
यह विषय बहुत ही गम्भीर और समस्या युक्त है। इस परिस्थिति से प्राय: सभी को गुजरना पड़ता है। बहुत कम लोग ही इसमें सामन्जस्य बिठा पाते हैं। सफल वही पुरुष हो पाते हैं, जिनकी पत्नी और माँ दोनों समझदार हों, या एकदम नासमझ हों तो दोनों को समझाया जा सकता है। अर्द्ध समझ वाली हालत में मुश्किल होती है।
ये बात सत्य है कि, पत्नी की मानो तो ‘जोरू का गुलाम’ और माँ की मानो तो ‘श्रवण कुमार’।
रामायण में चौपाई है-
“कह अंगद नयन भरी बारी, दुई प्रकार से मृत्यु हमारी।
इहाँ माँ सीता खोज नहीं पाई, वहाँ गए मारी ही कपिराई॥”
ये प्रसंग तब का है, जब अंगद अपने दल के साथ माता सीता को खोज नहीं पाए थे, क्योंकि उन्हें कहा गया था कि, नहीं खोज पाने पर मार दिया जाएगा। यदि नहीं खोज पाए तो उधर ही मर-खप जाना।
उसी तरह से पुरुषों की हालत हो जाती है। स्वयं इस संकट से गुजर चुका हूँ, जबकि पूर्ण रूप से किसी की तरफ नहीं गया। माँ कहती- ‘उसी की बात मानता है’ तो पत्नी कहती-‘माँ के श्रवण बेटे हो, जो कहती हैं वही करते हो’। मैं चुपचाप सुन लेता, लेकिन मेरे सामने दोनों ने कभी तीखी बातचीत नहीं की। दोनों अकेले में कहती थी कि, उसने मुझे कभी उल्टा-पुल्टा नहीं बोला है।

अब संसारिक बात करते हैं। लोग कहते हैं यानी किसी को समझाते हैं कि, पत्नी तो बहुत मिल जाएगी लेकिन माँ नहीं मिलेगी। बात सत्य है, लेकिन हम लोग मुसलमान तो नहीं कि ऐसा करेंगे। दूसरी बात पत्नी तो आती है, अपनी माँ-बाप, सखी-सहेली सब- कुछ छोड़कर। यदि हम उसके साथ अच्छा व्यवहार न करें तो सरासर अन्याय है। वो अपना सुख-दुःख किसके साथ कहेगी ? उसकी भी तो इच्छाएँ हैं, इसलिए पुरुष को दोनों में सामन्जस्य बना कर ही चलना पड़ता है। परिस्थिति तब कठिन हो जाती है, जब माँ कल्याणी (विधवा) हो। पिता जी के जिन्दा रहने पर पत्नी की तरफ ज्यादा झुकाव होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, फिर भी पुरुष कठिनाई में पड़ ही जाता है। दोनों को संतुष्ट रखना आज के युग में मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है, क्योंकि हर कोई स्वतन्त्र रहना चाहता है। माँ पुराने युग से चलना चाहती है तो पत्नी नए से। इसमें जिसने सामन्जस्य बिठा लिया या बैठ गया, उनके परिवार में शान्ति, नहीं तो ‘अशांति रानी’ तो घूमती ही रहती है अपना प्रभाव जमाने के लिए।