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कल्पना तक नहीं की

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष………


प्रत्येक प्रयास करने के बावजूद नींद नहीं आ रही थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा कहे शब्द मस्तिष्क पर हथौड़े मार रहे थे। कारण यह था कि मुझे अपने बचपन के बिताए ‘बड़े दिन की छुट्टी’ के दिनों की याद आ रही थी,जिनमें मैंने स्वच्छता एवं राष्ट्रभक्ति की सौगंधें खाई थीं,जिन्हें मैं साकार नहीं कर पा रहा था।
उन दिनों महात्मा गांधी द्वारा सुझाए मार्गों को पढ़ना और उन पर चलना याद आ रहा था। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा कहे उक्त शब्द ‘सपने वह नहीं होते जो नींद में देखे जाते हैं,बल्कि सपने वह होते हैं,जिन्हें देखकर नींद ही ना आए`, जबकि दूरदर्शन पर आगजनी की भयंकर तस्वीरें आ रही थीं,जो अत्यंत दुखद थीं। वर्तमान राष्ट्रपति कहते हैं कि ‘पाक्सो कानून के अंतर्गत रहम की याचिका का प्रावधान ही खत्म कर देना चाहिए,जबकि सत्य यह है कि बेटियों से बलात्कार के बाद उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है, जिनकी दया याचिकाएं उन्हीं के पास लंबित पड़ी हैं। दूसरी ओर नागरिकों के अतिप्रिय व सशक्त प्रधानमंत्री `नागरिकता संशोधन कानून` पर अपने स्पष्टीकरण में नागरिकों से आग्रह करते हुए दिखाई दे रहे हैं कि ‘भले ही मेरे पुतले फूंको,पर राष्ट्र को न जलाओ,गरीबों को मत सताओ।` ऐसी मार्मिक प्रार्थनाओं को सुनकर मुझे तो क्या किसी भी देशभक्त को नींद कैसे आ सकती है ? जब अन्नदाता भूखा मर रहा है,बेटियों को बलात्कार के बाद जिन्दा जलाया जा रहा है,पीड़ित-प्रताड़ित-उत्पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने जैसे मानवीय कानून के लागू करने के कारण ‘मानव अधिकार एवं राजनीतिक संगठनों के स्वार्थी सदस्यों के पेट में असहनीय पीड़ा हो रही है,जिसके कारण वह देश व देश के नागरिकों की अरबों रुपये की सम्पत्ति, डिजिटल इंडिया के सीसीटीवी के कैमरों की परवाह न करते हुए जला रहे हैं। वे सुरक्षा बलों पर पत्थरों एवं पैट्रोल बमों से हमला कर रहे हैं। उन्हें जान से मारने का प्रयास कर रहेे हैं। यह इसलिए है,क्योंकि उपद्रवी भली-भांति जानते हैं कि उन्हें भारतीय दण्ड संहिता की धारा ३०२,३०७ के अंतर्गत दण्ड नहीं मिलेगा,२ करोड़ की सरकारी बस को फूंकने पर उनसे ‘बस के बदले बस इत्यादि’ की भरपाई नहीं की जाएगी। उन्हीं अपराधिक उपद्रवियों के मानवाधिकारों की दुहाई का ढिंढोरा पीटने वाले स्वार्थी नेता यह भी भली-भांति जानते हैं कि सरकारी कर्मचारियों अर्थात सुरक्षा बलों के सैनिकों का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रेगुलेशन ०९ के अंतर्गत ‘मानव अधिकार’ ही नहीं है, जिसके कारण विश्वविख्यात भारतीय सुरक्षा बलों के सैनिकों की यह दुर्दशा हो रही हैl तो ऐसे में विद्वान अधिवक्ता बताएं कि मुझे नींद कैसे आ सकती है ? क्योंकि ‘बड़े दिन की छुट्टी’ में तो क्या ‘छोटे दिनों की छुट्टियों’ में भी ऐसी कल्पना तक नहीं की थी।

परिचय-इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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