ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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न होना बेईमान, सैनिक हमारी जान,
इनका तुम सदा करना सम्मान…।
परदे का अभिनेता नहीं, वास्तविक नायक यही,
देश की शान हमारे जवान…।
शत्रु के लिए महाकाल, चलते सिंह चाल,
जां देकर भी करते कल्याण…।
वीर मेरे राष्ट्र के, बाजुओं से अपने,
ताकत है भुजाओं में, मसल दें चट्टान…।
मुख आँधियों का मोड़, मरूस्थल पानी निचोड़,
संकट में सदा करते महाभियान…।
सागर का सीना चीर, है आपदा वीर,
इनसे मिलती मदद, हमारा अभिमान…।
हौंसले के दीप से, कालिमा तम मेटते,
यह तो झेल जाते हर तूफान…।
हिमालय के हिम भी, पिघला दें ये बली,
मेहनत करके झुकाते आसमान…।
रौंद दें घने वन, अंधड़ या पवन,
इनका क्या कहना, मानते समान…।
दर्द, दु:ख, नींद, भूख, झेल जाते चुप,
देश के लिए देवतुल्य भगवान…।
देते देशभक्तों को मान, देशसेवा पर ध्यान,
यह तो हैं सदा देशद्रोहियों के लिए त्रान॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।