शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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हो हरित वसुंधरा…..
वातावरण सुरम्य हर तरफ़ हरा-भरा।
हम करें प्रयास सभी हो हरित वसुंधरा॥
वृक्ष हों घने-घनें लचक रहीं डालियाँ,
खेतों में धान की लहरा रही बालियाँ।
लुटाए खजाने हमें अपनी माता धरा,
हम करें प्रयास सभी…॥
जगमगाती दिनकर की किरणों का साथ हो,
पतझड़ न आये कभी खिले-खिले बाग हो।
नृत्य कर रहे मयूर पी कहे पपीहरा,
हम करें प्रयास सभी…॥
वृक्षों की लम्बी-लम्बी लगी कतार हो,
नदिया की धारा की हो रही फुहार हो।
हरदम रहेगी धरा अपनी माँ उर्वरा,
हम करें प्रयास सभी…॥
चारों ओर हरे-हरे खूब चरागाह हों,
झरनों अरु नदियों में नीर का प्रवाह हो।
हरियाली चुनर का रंग हो रहा हरा,
हम करें प्रयास सभी…॥
बागों में फूल अरु कलियाँ खिलती रहें,
काली घटाओं से बरसात बरसती रहे।
नीर से तड़ाग सदा ही रहे भरा-भरा,
हम करें प्रयास सभी हरित हो वसुंधरा।॥
परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है