डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
*************************************************
यह राज-ए-मोहब्बत गुलशन,
हर धड़कन चितवन प्रीत खिले
आगाज़ प्यार सात फेर जनम,
यादों में गुम्फित मीत मिले।
दाम्पत्य मुदित शुभ तीस साल,
राज-ए-मोहब्बत लूट गए
हम युगल प्यार नव यौवन पल,
कुछ ही लम्हों में बीत गए।
हम प्रणय गीत परणीति मिलन,
हो भव्य मनोहर प्रीत मिले
फिर लिखें रम्य, प्रणयन बन्धन,
अभिनव गाथा मधुमीत बने।
अहसास यकीनों में अविचल,
हर इश्क़ अश्क़ बन बहे चले
अनुराग राग मधुसार मिलन,
गुलज़ार दिलों को लूट गए।
निशिकांत कान्ति सब क्लान्ति समन,
दिल कशिश हमसफ़र बने रहे
हर आपद ढाल बने दिल मन,
गम जख़्म सितम सब भूल गए।
बन भोर अरुणिमा जीवन में,
नव कीर्ति प्रगति हम मीत बने
अनमोल प्रणय सम्वाहक हम,
अनुभूति मोहब्वत जीत गए।
गंभीर मौन संयम धीरज,
सुमति विवेक सुपथ सहज बने
मृगनैन अश्क़ छिप सम्वेदन ?
प्रिय सदय क्षमा हिय उरज रहे।
जीवन-साथी हम साथ-साथ,
बाँटे खुशियाँ मुस्कान खिले
ये राज मोहब्बत धरे हाथ,
ख्वाहिशों मंजिलें फले-फूले।
हमदम गुलशन दिलदार सनम।
ख़ुद सजा गुलिस्ताँ सनम बने
जीवन की डोर बनी सजनी,
पतझड़ ‘निकुंज’ दिल पुन: खिले।
राज-ए-मोहब्बत तुम प्रियतम,
मैं घटा व्योम तुम जलज बने
मैं धरा शुष्क बिन प्रीत बरस,
प्रियतम सावन दिल बरस गए।
यादों की महफ़िल जीवन पल,
रुख़्सार इबादत लिख गए
तुम पास रहो अहसास मधुर,
गुल्फ़ाम मोहब्बत सीख गए।
रजनीगंधा निशिकांत हृदय,
चन्द्रकला प्रीति कुमुदिनी खिले
महका तन-मन आलिंगन प्रिय,
प्रभु कृपा कीर्ति अनमाेल मिले।
मैं और तुम यायावर प्रणय,
परिणीति प्रिये निशिकांत मिले
यह प्रणय मिलन वर्षगाँठ युगल,
राज-ए-मोहब्बत गान बने।
दूँ तुझे, बधाई मंगल सुख,
जिंदगी डोर जीवन्त बने।
जो शेष समय जीवन हमदम,
हो सुकूं मोहब्बत राज सने॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥