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हाथरस हादसा:हृदयविदारक घटना के कई सवाल, निर्णायक कार्रवाई हो

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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उत्तर-प्रदेश के हाथरस में श्री नारायण साकार विश्व हरि (भोलेबाबा) के सत्संग के समागम में हुई भगदड़ ने १२१ लोगों की जान ले ली। ऐसा होने के बाद ना तो बाबा अपने अनुयायियों के पास आए और ना आश्रम के सेवादार प्रतिनिधि कुछ कह सके। फिर बाबा ने अपना पल्ला झाड़ दिया। विभिन्न माध्यमों से लोगों के मन में विश्वास पैदा करने वाले भीड़ बुला लेते हैं, और फिर उन्हें मझधार में अकेला छोड़ कर भाग जाते हैं! यह दुर्भावना पूर्ण है और, कब तक इस तरह के मामलों में दोषी फरार होकर बचते रहेंगे ? सत्संग में मची भगदड़ की इस हृदयविदारक घटना से दिल दहल जाता है। आखिर इन १२१ लोगों की जान जाने का दोषी कौन है ? इस पर अब जाँच की स्याही से लिखा जाना है, पर शासन-प्रशासन व आयोजनकर्ता अपनी जवाबदेही से भाग नहीं पाएंगे। पहले बाबा भाग गए और अब अपने-आपको बेकसूर बता रहे हैं। बोल रहे हैं कि यह साजिश है बाबा के खिलाफ। वह यहाँ नहीं थे, चले गए थे। सिर्फ इतना कह देने से उन लोगों की जान वापिस नहीं आने वाली है। इस घटना में महिला और बच्चों की मौत सबसे ज्यादा हुई। आखिर कब तक ऐसी मौतों के प्रति हमारी मानवीय संवेदना जागरूक क्यों नहीं होगी ? इसका जवाब शासन-प्रशासन को भी देना पड़ेगा। इतनी बड़ी संख्या में आयोजित कार्यक्रम में खुफिया तंत्र व पुलिस प्रशासन कहा चिरनिंद्रा में सो रहा था ? बाबा के सेवादारों की बदइंतजामी ने भीड़ को भगदड़ में बदल दिया और लोगों की जान ले ली। इतनी बड़ी संख्या को नियंत्रित करने की आयोजनकर्ता को ठोस व्यवस्था करनी चाहिए थी। अगर सही इंतजाम किए जाते तो इतनी संख्या में लोग मौत के मुँह में नहीं जाते। जानकार बता रहे हैं कि ज्यादा लोगों की मौत दम घुटने से ही हुई है। ऐसे पाखंडी बाबा ग्रामीण इलाकों के लोगों को झूठ-फरेब की लालिमा से अधिक चकित करते हैं। इसका ताजा उदाहरण सामने है।

आखिर यह अंधविश्वास की भेड़चाल क्यों है ? घटना का क्षेत्र स्थल ग्रामीण था, तब भी त्वरित स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में इतने लोगों ने दम तोड़ दिया। यानी पूरी अव्यवस्थाओं में शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों पर भी अब अंगुलियाँ उठना स्वाभाविक है। बड़े-बड़े दावे होते हैं कि, ग्रामीण क्षेत्र में सब सेवाएं मिलती हैं, पर व्यवस्था की भी कमी दिख गई है। आज गाँव में इलाज के अभाव में जब जानें गई तब सभी परतें खुल गई। सवाल यह भी कि, इतनी त्वरित व्यवस्था घटना के बाद ही क्यों होती है ? पहले सब अनदेखा क्यों किया जाता है ? यह बहुत ग़लत बात है। इस घटना में अब मरहम क्या मुआवजे से लग सकता है ? राज्य के मुखिया को अपनी कार्य-शैली में सख्त कार्रवाई करनी होगी, सिर्फ खानापूर्ति से कुछ नहीं होगा। लाशों के ढेर लगाने के इस मामले में सख्त-निर्णायक कार्रवाई होनी चाहिए, ना कि फाईलों के ढेर में इन मौतों के गुनहगारों को छुपाया जाए। पाखंड के नाम पर मौत के दोषी बाबा, जो अपने-आपको भगवान बताते हैं, उनके पाखंड की भी जाँच होनी चाहिए।