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हारा अँधेरा

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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हारा अँधेरा आज देखो थम कहर गया,
ये नूर का सैलाब जैसा क्या बिखर गया।

दीपावली की रात आई देख रौशनी,
सारे जहाँ का आज तो भाग्य सँवर गया।

तोरन लगी है दीप रंगोली सजी हुई,
ये रंग, ये रौगन, ये चमक, घर निखर गया।

मिल चेहरे जोया खुशी, सबके निखारती,
मुहब्बत ही मुहब्बत है, दिखा
गुम-सा गदर गया।

चकरी, पटाखे, फुलझड़ियाँ, मिठाइयाँ,
है आसमां से स्वर्ग जमीं पे उतर गया।

देखो जिधर, है साफ़-सुथरा आज हर तरफ,
बरसात का कूड़ा जमा सारा किधर गया।

दीपावली है देव रहमो-करम से भरी,
फेरी लगी गौ मात की, पूजन शजर गया।

कुदरत, जमीन, अनाज में लक्ष्मी बसी हुई,
इसका अदब जो नहीं किया, उसका मान गया।

‘ममता’ चिरागों का मनाओ जश्न आज तुम,
जिसने मनाया है, नसीबा सुधर गया॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।