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मन के रावण को जला दें

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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युगों से विजयादशमी के दिन प्रभु राम द्वारा युद्ध में रावण का बध कर विजय पाने का त्योहार-उत्सव हर वर्ष मनाया जाता है। यह असत्य पर सत्य, अहंकार पर विनम्रता, निराशा में आशा, दुःख पर सुख, अंधकार पर प्रकाश की जीत, हर तरह से सुंदर सकारात्मकता की जीत का पर्व है। नौ दिवसीय देवी दुर्गा माँ की पूजन-अर्चन, तप-जप धैर्य से मनाने के बाद ही विजयादशमी का उल्लास भरा शुभ दिवस आता है। देवी भगवती हिंसा नहीं, समर्पण भक्ति त्याग के साथ सत-भाव की जागृति चाहती हैं। आज इस युग में दिखावे का चलन है। होड़ लगी हुई है, जिसकी कोई सीमा नहीं है।
मनुष्य जीवन के अनेक पहलू हैं। मानव के भाव और प्रकृति भी कहीं ना कहीं सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के बीच पेंडुलम-सा झूलती रहती है। संसार में जन के विचारों में, व्यवहारों में कई तरह की विकृतियाँ देखने को मिल रही है, जिससे आए-दिन अनहोनी दुखदायी घटनाएँ, हिंसक व्यवहार भी देखने-सुनने को मिलते हैं।
असल में यही मन के गलत विचार जो गलत कर्म की ओर ले जाने वाली विकृतियाँ ही रावण हैं। मन में जब अंधकार रहेगा, तो प्रकाश के लिए सत्य, सुंदर विचार एवं कर्म ही राम है, जो मानव हृदय में स्थित अलौकिक हैं। जब हम राम को जागृत करते हैं, तब मानव जीवन का उद्देश्य आत्मिक और सांसारिक प्रकाश की ओर, सुकर्म की ओर ले जाते हैं, सौहार्द भाव जगता है।
जब तक हमारे मन के रावण को हम जला ना दें, तब तक राम कैसे मिलेंगे। राम याने सत्यानंद, स्नेह, सुख, समृद्धि शांति-प्रगति हैं। हमारे भावी नागरिक मतलब बच्चों को भी सही मार्गदर्शक की अत्यंत आवश्यकता है। उन्हें बचपन से ही राम और रावण का अंतर बताना भी हमारा ही कर्तव्य है। इसके लिए स्वयं के मन के रावण को जलाए बिना हम उन्हें कैसे राह दिखा सकते हैं !

आइए, हम सब मन के रावण को जलाएँ और सत्य के प्रतीक राम को जागृत करें। मानव जीवन को सुख-शांति, दया, सौहार्द संग सत प्रगति के पथ पर अग्रसर करें।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है