कुल पृष्ठ दर्शन : 173

You are currently viewing हिन्दी हमारी भाषा है,इस पर अभिमान करें

हिन्दी हमारी भाषा है,इस पर अभिमान करें

राजकुमार जैन ‘राजन’
आकोला (राजस्थान)
******************************************************

हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..

भाषा किसी भी राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर की संवाहिका होती है और भाषायी एकता से ही राष्ट्र की अखण्डता सुदृढ़ होती है। कोई भी देश अपनी स्वयं की भाषा के बिना अपने राष्ट्रीय व्यक्तित्व को मौलिक रूप से परिभाषित नहीं कर सकता।

भारत की सभी भाषाएं समृद्ध हैं। उनका अपना साहित्य,शब्दावली तथा अभिव्यक्तियाँ एवम मुहावरे हैं। सभी भाषाओं में भारतीयता की एक आंतरिक शक्ति भी हैं। भले ही भाषाएं अलग-अलग हों,इन्हें बोलने वाले लोग देश के अलग- अलग हिस्सों में रहते हों,पर ये सभी भाषाएं भावनात्मक रूप से हमारी साझा धरोहर हैं।

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को विश्व पटल पर प्राचीनकाल में जहां संस्कृत भाषा ने पहुंचाया,वहीं बीसवीं सदी के बाद से आज तक हिन्दी भाषा ने विश्वभर में भारतीयता का परचम लहराने का काम किया है। हिन्दी भारत की समृद्धतम और श्रेष्ठतम भाषा है। देश की कई भाषाएं हैं,जो हिन्दी से भी पुरानी और समृद्ध है। संस्कृत तो सभी भारतीय भाषाओं की जननी है और हमारे पास अत्यंत समृद्ध क्षेत्रीय भाषाएं भी हैं। विषय यह है कि हिन्दी सर्व सुलभ और सहज ग्रहणीय भाषा है। इसका स्वरूप वैज्ञानिक और समावेशी है।

हिन्दी का महत्व हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रारम्भ में ही स्वीकार कर लिया था,जिसे अब पूरे संसार ने भी मान लिया है। आज हिन्दी विश्व में सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा बन चुकी है। देश-विदेश के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई होती है। ज्ञान-विज्ञान की मौलिक पुस्तकें हिन्दी में भी लिखी जा रही हैं। हिन्दी ने भारतीय पुरातन संस्कृति से संविधान निर्माण प्रक्रिया तक और पुरातन युग से इंटरनेट, सोशल मीडिया और संचार माध्यमों की प्रमुख भाषा बनने तक का लंबा सफर तय करते हुए हमारी सामयिकता को अक्षुण रखने में महती भूमिका निभाई है और देशवासियों में अनेकता में एकता की भावना को पुष्ट किया है।

जिस देश के नागरिक अपनी भाषा में सोचें और लिखें,विश्व में उस देश को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। भारत जैसे विशाल और बहुभाषी और प्रजातांत्रिक देश की चौमुखी विकास प्रक्रिया में हिन्दी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं की अहम भूमिका रही है। हमारे देश की सभी भाषाएं और बोलियां हमारी राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक धरोहर है। इनका प्रयोग और प्रचार-प्रसार करना हम सबका कर्तव्य है।

भाषा और चिंतन की गुलामी से मुक्त हुए बिना हम सही अर्थों में स्वयं को स्वतंत्र नहीं मान सकते। भाषाओं के सम्बंध में इतनी सम्पन्नता होते हुए भी हम विदेशी भाषा के मोह से उभर नहीं सके हैं। भारतीय समाज में अंग्रेजी और हिन्दी भाषा को लेकर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा भ्रम की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। दुर्भाग्य है कि भारत में पढ़े-लिखे समाज में हिन्दी बोलना दोयम दर्जे की बात हो गई है। दूसरी तरफ हिन्दी का वैश्विक स्तर पर प्रसारित होना गौरव की बात है। हमें केवल इतना ही करना है कि हम अपना आत्म विश्वास जगाएं और अपने भारत व यहां की भाषा हिन्दी पर अभिमान रखें। हम संसार की श्रेष्ठतम वैज्ञानिक भाषा,बोली और परम्पराओं वाले हैं। केवल हीन भावना के कारण हम अपने को दोयम दर्जे का समझ रहे हैं।

इस भावना से हमें बाहर आना होगा। प्रारम्भ हमें घर-परिवार व स्वयं से करना होगा। गर्व करने के लिए इतना ही पर्याप्त है कि हिन्दी भारत का विचार और भारत को जानने-समझने के लिए वर्तमान में सबसे उपयुक्त भाषा है। हिन्दी को व्यवहारिक उपयोग में लाने के लिए प्रत्येक भारतीय को इस दिशा में ईमानदारी का परिचय देना चाहिए।

जब दुनिया हिन्दी सीखने,पढ़ने,लिखने के लिए उत्सुक हो रही है और हिन्दी विश्व -भाषा बनने की और अग्रसर हो रही है,वहीं भारत में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति उदासीनता और अंग्रेजी के प्रति प्रेम बढ़ता जा रहा है, यह चिंतनीय अवश्य है।

हमारा पिछले तीन दशक में कई पत्रिकाओं से सम्पादन प्रक्रिया के रूप में जुड़ाव रहा और मन में हिन्दी भाषा के प्रचार -प्रसार व उन्नयन का भाव ही प्रमुख रहा। हमारा मानना है हिन्दी भाषा को बचाना है तो बालकों को हिन्दी बाल साहित्य से जोड़ना होगा और अधिकाधिक हिन्दी मे लिखने वाले नये रचनाकारों को प्रोत्साहन देकर उन्हें हिन्दी व नागरी लिपि का ज्ञान देना होगा। इस प्रयास में कई बार हमने रचना के कला पक्ष की जगह भाव पक्ष को ही महत्व दिया और इस कारण कई बार कमजोर रचनाओं को भी प्रकाशित किया कि,चलो इससे नव सृजन करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा। प्रारम्भ में ही हम उन्हें हतोत्साहित कर देंगे तो वे हिंदी भाषा से विमुख हो जाएंगे।

 

परिचय-राजकुमार जैन का उपनाम ‘राजन’ है। आकोला(राजस्थान)में २४ जून को जन्में श्री जैन की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)है। लेखन विधा-कहानी, कविता है,जिसमें पर्यटन,लोक जीवन एवं बाल साहित्य प्रमुख है। आपका निवास आकोला में है। आपकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है, जिसमें-‘नेक हंस’ और ‘लाख टके की बात’ आदि प्रमुख है। हिन्दी सहित राजस्थानी, अंग्रेजी में भी बाल साहित्य की इनकी ३६ पुस्तकों का प्रकाशन हों चुका है,तो हिंदी बाल कहानियों का मराठी अनुवाद २० पुस्तकों में प्रकाशित हों गया है। विशेष रुप से ‘खोजना होगा अमृत कलश’ (कविता संग्रह) पंजाबी,मराठी,गुजराती सहित नेपाली एवं सिंहली में अनुदित होकर श्रीलंका से प्रकाशित हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित करा चुके श्री जैन की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन सहित विभिन्न चैनल्स से हो चुका है। आपने सम्पादन के क्षेत्र में ‘रॉकेट'(बाल मासिक),’श्रमनस्वर’,’टाबर टोली’ एवं ‘हिमालिनी'(नेपाल)पत्रिकाओं को सहयोग दिया है। ‘राजन’ नाम से प्रसिद्ध बाल रचनाकार कईं मासिक पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके हैं। अनुवाद के निमित्त- ‘सबसे अच्छा उपहार’ बाल कहानी संग्रह पंजाबी,मराठी,उड़िया,गुजराती और अंग्रेजी में अनुदित हुआ है। हिन्दी बाल साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक पर संस्थापक के रुप में आप प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर २१ हजार रूपए का ‘पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार’(११ वर्ष से सतत) और ५ हजार राशि के सम्मान देते हैं। ‘राजकुमार जैन राजन फाउण्डेशन’ की स्थापना करने के साथ ही आप साहित्य,शिक्षा,सेवा एवं चिकित्सा में निरन्तर सक्रिय हैं। आपको प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में उदयपुर से ‘राजसिंह अवार्ड’ (२ बार),’शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’,राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (राज. सरकार),‘जवाहर लाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’,गिरिराज शर्मा स्मृति सम्मान,जयपुर द्वारा ‘समाज रत्न-२०१६’ और भारत-नेपाल मैत्री संघ द्वारा साहित्य सेतु सम्मान-२०१८ सहित १०१ से अधिक पुरस्कार-सम्मान प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। श्री जैन ने विदेश यात्रा में अमेरिका,कनाडा, मॉरीशस,मलेशिया,थाईलेंड,श्रीलंका और नेपाल आदि का भ्रमण किया है। आप विशेष रुप से हिन्दी के प्रचार-प्रसार सहित बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं।