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बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थानों में हिंदी का महत्व

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
झज्जर(हरियाणा)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..


वित्तीय व्यवसाय सामान्यजन से जुड़ा है। पिछले २ दशक में बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थानों का स्वरूप काफी बदल गया है। घंटों-घंटों कतार में खड़े रहने वाला,थका देने वाला माहौल आज कितना आसान हो गया हैl नई तकनीक के प्रचार व प्रसार,उसकी महत्ता,गुण,उपयोगिता ने आज मानव को उसके घर में ही सीमित कर,उसे पूरी तन्मयता के साथ नये-नये साधनों का प्रयोग करते हुए,एक छोर से दूसरे छोर तक संपर्क करने व लेन-देन करने के योग्य बना दिया है। आज तकनीक चाहे कितनी भी आधुनिक हो जाए,नये-नये आयामों को प्राप्त कर ले,फिर भी मूल इकाई क्या है,जिससे हमने लक्ष्यों को पाना है,कारोबार को बढ़ाना है,वह है-ग्राहक ,उपभोक्ता,एक आम आदमी,जो हिन्दी ही जानता है,हिंदी ही समझता है,हिंदी ही बोलता है। बैंकिंग व अन्य व्यवसाय में हिंदी का महत्व और भी बढ़ जाता है,आपको अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार हिंदी भाषा को बिंदु बना कर,उसे लक्ष्य मान कर करना होगा।
बदलते वित्तीय परिवेश में हिंदी को जितना अधिक लोगों के बीच लायेंगे,उन्हें हर बात हिंदी में ही समझायेंगे,तभी वह दिल से-मन से जुड़ पाएंगे। वह आपके कार्य,व्यवहार की ,योजनाओं की चर्चा करेंगे और लोग जुड़ते चले जाएंगेl वास्तव में यही तो बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय में हिंदी के महत्व को उजागर करता है।
भारत गांवों में बसता है और सबसे अधिक आवश्यकता इन्हीं ग्रामीण लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की हैl यह वर्ग अधिकांश हिंदी भाषा ही समझता है और बोलता है।आज बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा है,चुनौती है,आगे बढ़ने की होड़ है, क्षेत्र विस्तृत ही होता जा रहा है,तो ऐसे में तो हिंदी का महत्व और भी बढ़ जाता है। जो भी तकनीक आम आदमी से जुड़ी है,उसमें असीम वृद्धि की हमारे यहां गुंजाइश है, अपेक्षा है। हमारी अर्थव्यवस्था उठान पर है,इसलिये तकनीक का प्रयोग करने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई हैl यह बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थानों में हिंदी के महत्व को देने व उसके प्रचार-प्रसार के कारण ही है। आज सभी सरकारी व निजी बैंक,बीमा कम्पनी में भी प्रयोग में आने वाली सारी सामग्री,दस्तावेजी काम अधिकतर हिंदी में है,या हिंदी-अंग्रेजी में हैl यहां तक कि विदेशी बैंक भी हिंदी का एक स्तर तक प्रयोग कर रहे हैं। संसार के सभी सभ्य और स्वाधीन देश अपना काम हिंदी भाषा में करते हैं,पर भारत इसका अपवाद है।
आज़ादी के ७२ वर्ष बाद भी हमारा अधिकांश कार्य अंग्रेजी में हो रहा है,जबकि हिंदी सरल एवं वैज्ञानिक भाषा है। हिंदी जानना,बोलना और लिखना पिछड़ेपन की निशानी नहीं, अपितु यह तो गरिमामयी राष्ट्रीय अभिव्यक्ति है। हिंदी राष्ट्रीय गौरव और अस्मिता का प्रतीक ही नहीं,भारत की आत्मा की आवाज़ हैl यही आवाज़ बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय में हिंदी की महत्ता को समझते हुए जब गुंजायमान होगी,तो हिंदी हिन्द का गौरव होगी,माँ भारती के माथे का तिलक होगी। जब हिंदी का बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थानों में भरपूर प्रयोग होगा,जन-जन तक लोगों को अपनी भाषा में योजनाओं की जानकारी मिलेगी,उनका लाभ उठा कर, अपने व्यवसाय को,रोजगार को,अपनी दुकान ,अपने कार्य को बढ़ावा देकर गति देंगें,तो देश भी प्रगति के रास्ते पर चल पड़ेगा,दौड़ेगा,
उम्मीदों के आसमाँ को अपने कदमों में ले आएगाl उसके साथ-साथ राष्ट्र का भी विकास होगा,तरक्की के रास्ते पर अग्रसर होगा,विश्व में बुलंदियों पर अपने भारत का नाम होगा।
वित्तीय व्यवसाय में हिन्दी को तभी सम्पूर्ण महत्व मिल पाएगा,जब सूचना प्रौद्योगिकी को अपने अंदर आत्मसात कर लेगीl यह तकनीक भी अपने प्रवाह के लिये भाषा का
माध्यम ढूंढती है और जनभाषा से बेहतर कोई अन्य सशक्त माध्यम नहीं हो सकता। इसी कारण ही विश्व के किसी भी कोने तक हमारा संपर्क हो गया है। आज हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा अपने घर पर या कार्यालय में बैठे अपने अन्य कार्यालयों में काम कर रहे लोगों से संवाद कर सकते हैं। ऐसे ही मुख्यमंत्री अपने सचिवालय से ही सभी जिलाधीशों से एक ही समय में बात कर सकते हैं। यह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग अधिकतर हिंदी में ही होती है। आम कम्प्यूटर उपभोक्ता के कामकाज से लेकर डाटा बेस तक में हिंदी पूरी तरह उपलब्ध है। यह बात अलग है कि अब भी हमें बहुत दूर जाना है,बहुत आगे जाना है,पर एक बड़ी शुरुआत हुई और इसे होना ही था। आज घर बैठे,भाषा चयन करके मोबाइल,लैपटॉप पर बैलेंस,स्टेटमेंट देखिए, नेट बैंकिंग के माध्यम से लेन-देन कीजिये, कितना आसान हो गया है सब-कुछ,वो भी सब हिंदी में। आखिर जन-जन की भाषा-हिंदी,दुलारी हिंदी,करोड़ों लोगों की ह्रदय स्पंदन कैसे पीछे रह सकती है। बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय में हिंदी के महत्व को बढ़ाता यह अनवरत निरंतर प्रयास कवि दुष्यंत की यह पंक्तियां ही दोहराता-सा लगता है-
“कौन कहता है,आसमां में छेद नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।”
तबियत से उछाला गया यह पत्थर ईमानदारी,निष्ठा,आत्मविश्वास से भरा प्रयास एक दिन हिंदी को आसमां की ऊंची ऊंचाईयों तक ले जाएगा। हिंदी का अधिकतम प्रयोग ही,बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय को प्रगति देगा,उन्नति के नए कीर्तिमान स्थापित करेगा, आखिर अधिकांश लोगों की भाषा,जन-जन की भाषा को कैसे नकार सकते हैं। हमें तो स्वयं को हिंदी के प्रयोग में ढालना ही होगाl यह तो अपरिहार्य है,कारण स्पष्ट है,हमारे पास तो संख्या बल है,युवा शक्ति है,पढ़े-लिखे, समझदार और मातृभाषा हिंदी को महत्व देने वालों की तादाद करोड़ों में है। अगर इन करोड़ों तक पहुंचना है,बैंकिंग व अन्य वित्तीय व्यवसाय में निरंतर विस्तार लाना है, लाभप्रदता बढ़ानी है,विकास की ऊंचाइयों को छूना है,रोजमर्रा के काम में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना ही है,सरलतम,सुलभ ढंग से नित नई तकनीक का प्रयोग कर,हर आदमी की पहुंच में,आम आदमी की पहुंच में ला कर ही बैंकों व अन्य सभी वित्तीय संस्थानों के लिये अपने लक्ष्यों को पाना आसान होगा। जन-धन योजना के तहत २२ करोड़ से ज्यादा खाते खुले,योजना की
घोषणा होने पर ५ साल पहले तो १२ करोड़ से ऊपर खाते तो ६ माह में ही खुल गए थे। ये खाता खुलवाने वाले अधिकतर आम गरीब मज़दूर,छोटे किसान थे,यह सब हिंदी की सर्वसुलभता,आम बोलचाल की भाषा के कारण हुआl बैंक का कारोबार बढ़ा,ग्राहक संख्या का व्यापक विस्तार हुआ,जन-जन तक पहुंचने पर बैंक की स्वीकार्यता बढ़ी। सभी वित्तीय संस्थानों ने,हिंदी के महत्व को ,हिंदी की महत्ता को अमीर-गरीब,बड़े-छोटे, सभी ने अनुभव किया,महसूस किया। इन्हीं सब वर्गों के ग्राहकों ने ही हिंदी की सुलभता, सरलता को अपना कर,जुड़ कर,आज बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थानों के क्षेत्र को व्यापक आकाश में दैदीप्यमान कर दिया है। हमें सिर्फ हिंदी में ही कार्य द्वारा सन्तोष नहीं करना है, बल्कि लोगों के दिल तक घर करना है। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना है,हमारी पहुंच का आधार व्यापक,विस्तृत और विशाल होना चाहिए।इसके लिये हमें अपने इरादों को मजबूत करना होगा,दृष्टि को गहराई देनी होगी। दृढ़ निश्चय,कर्मठता,निष्ठा का फल फलीभूत होगा। आज वित्तीय क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा विस्तृत,विशाल व असीमित है। हर दिन एक नई तकनीक को जन्म देता है। ग्राहक की अपेक्षा व महत्वाकांक्षा बढ़ती ही जा रही है। यह ग्राहक अधिकतर हिंदीभाषी हैंl अंग्रेजी के वर्चस्व के बावजूद भी हिंदी का भविष्य उज्जवल है। राष्ट्रीयता की भावना, राष्ट्रभाषा के प्रति अगाध प्रेम इन संभावनाओं को कभी मिटा नहीं सकता। इससे एक नया आयाम,नया आकार मिलेगा। हम सब मिल कर इसे एक नया जोश प्रदान करेंगेl जो बातें, जो चीजें कभी परी लोक की कल्पनाएं लगती थीं,आज मूर्त व साकार रूप ले रहीं है। यह सच है कि नित नए बदलाव के युग में हिंदी के वर्चस्व की संभावनाएं अनंत हैं। इनका कभी अंत नहीं होगा। नित नई संभावनाएं जन्म लेंगी और लेती ही रहेंगी।याद रखिए कि सुलभ,आसान,सरल
तकनीक से परिपूर्ण व्यवस्था होगी,तो यह महत्व अनवरत रूप से स्वमेव ही बढ़ता जाएगा,और यही तो हमारी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों के पार ले जाएगा। नित नई आशाओं को मूर्त रूप देने में हिंदी की महती भूमिका है। यही भूमिका ही नये रंग व नये आयाम में प्रस्तुत होगी। इरादा मजबूत हो तो हर चुनौती का पूर्ण समाधान होगा। इरादों को कभी बांधा नहीं जा सकता-
“बांधे जाते इंसान कभी,
तूफान न बांधे जाते हैं।
काया जरूर बांधी जाती,
बांधे न इरादे जाते हैंll”

परिचय-राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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