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हे मेरे देश! किन शब्दों से गुणगान करूँ…

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

विदेशी भूमि पर जन्म लेने वाले भारत-भूमि के विषय में एक न एक बार या कभी न कभी अवश्य सोचते ही होंगे-‘अगर यहाँ जन्म लिया होता तो मैं ऐसा होता।’
अक्सर अपने देश के बारे में जानने की जिज्ञासा अति उत्कंठा उत्पन्न करती है। यह उत्कंठा हो भी क्यों न! जिस पावन भूमि पर बादल गरज-गरज कर बरसने को आतुर रहते हों,ऋषि-देवता तक स्वर्ग पाने का मोह रखते हों,और मनुष्य अपने कर्म-कोश से मोक्ष की अभिलाषा रखता हो…अपार प्राकृतिक संपदा व वैभव से सम्पन्न भूमि पर जन्म होना अति पुण्य एवं गौरव की बात है।
मेरे देश की भूमि को हज़ारों वर्ष तक अखंड ज्योत से सींचने वाला राजा दुष्यंत-शकुंतला का सूर्य-सा तेजस्वी महान प्रतापी पुत्र व राजा था ‘भरत।’ प्राचीन समय में ओजस्वी राजा भरत ने जम्बू-दीप या आर्यावर्त की प्रजा को एकता के सूत्र में बाँध दिया था। उनकी भावी संतति ने हज़ारों वर्षों तक कंधार से लेकर अब तक के फैले क्षेत्र पर राज्य किया,जिसके कारण राजा ‘भरत’ के नाम पर मेरे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। मुग़ल शासन काल में हिन्दी-उर्दू भाषा के समन्वय से ‘हिन्दुस्तान’ की संज्ञा से अभिहित किया गया।
प्राचीन समय से ही तत्वदर्शी व त्रिकालदर्शी अनेक ऋषि-मुनियों,भिन्न धर्मों के संत-महात्माओं ने इस पावन-भूमि को अपने-अपने विविध क्षेत्र की ज्ञान-गंगा से सुशोभित किया है। वेद-पुराण व उपनिषद, रामायण और श्रीमद्भगवत् गीता आदि रचकर मनुष्य के जीवन-मूल्यों के संबंध में अमूल्य विचार-तर्क अपने तत्कालीन कठिन अनुभव से एकत्र कर प्रस्तुत किए हैं।
अपना देश भौगोलिक संरचना से यूरोप से सात गुना बड़ा और ब्रिटेन से तेरहवाँ गुना बड़ा है।
विश्व के तीसरे सबसे बड़े हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में हिन्दु,सिख, बौद्ध,जैन,ईसाई,पारसी,मुस्लिम आदि धर्मों व अनेक जाति-वर्ग के लोगों में ५६ भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमें २६ भाषाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। पर्वतों की उच्च श्रृंखलाओं के रूप में हिमालय प्रहरी के समान देश की रक्षा में अडिग खड़ा है। प्राचीन सभ्यता व संस्कृति आज भी पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण तक मंदिरों,मस्जिदों, चर्चों,महलों,इमारतों,क़िलों व गुफ़ाओं में अपने चरण अंगद समान दृढ़ता से जमाए हुए ‘अतिथि देवों भव:‘ के आत्म विश्वास से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। रमणीय तीर्थ स्थलों में केदार धाम,बद्रीनाथ धाम,कैलाश पर्वत व मानसरोवर (तिब्बत) प्रमुख हैं।
पूरे देश में अनेकों छोटी-बड़ी नदियाँ-गंगा,यमुना, सरस्वती (जो अब लुप्त) सतलुज,ब्रह्मपुत्र, मेघना, गोमती व ताप्ती आदि प्रमुख हैं। बर्फीली चोटियाँ देश का मुकुट हैं तो दक्षिण भाग सघन वनों से घिरा उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है। हमारा देश ३ महासागरों का त्रिभुज व त्रिनेत्र है जिसके एक ओर बंगाल की खाड़ी,दूसरी ओर अरब सागर और बीच में हिंद महासागर है ।
छ: ऋतुओं ( शीत, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा) के रंगों से देश की पारंपरिक ख़ूबसूरती के साथ मकर संक्रान्ति,बसंत पर्व,शिवरात्रि,होली,रक्षाबंधन,गणेश उत्सव,दशहरा,दिवाली आदि मु्ख्य पारंपरिक त्यौहार हैं। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्यौहार अपनी विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। ४००० वर्ष से अधिक प्राचीन रीति-रिवाजों को भी हमारे देश लोग बड़ी श्रद्धा व आस्था से निर्वाह करते हैं।
आधुनिक युग में जगदीश चंद्रबोस,सी.वी. रमण, होमी जहांगीर भामा,शांतिस्वरूप भटनागर,एम. एन. साहा व डॉ अब्दुल कलाम आदि वैज्ञानिकों ने भिन्न क्षेत्रों में भारत का नाम स्वर्णिम किया है । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने अपने क़दम विज्ञान की ओर अग्रसर कर बहुत सी उपलब्धियाँ प्राप्त की और नोबेल पुरस्कार भी जीते हैं। आज भारत को विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का तीसरा स्थान प्राप्त है।
देश आज अपनी क्षमता से अनगिनत क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने की कगार पर है। भारत के अधिकांश अति शिक्षित अभियंता,चिकित्सक, वैज्ञानिक अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान जैसे विकसित देशों में कार्यरत हैं और अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
साहित्य के महासागर में अनेक प्राचीन विद्वानों व साहित्यकारों-भरतमुनि,महर्षि व्यास, बाल्मीकि कवि कालिदास,तुलसीदास,सूरदास,मीर,मिर्जा ग़ालिब,मीरा,रहीम,भारतेन्दुहरिशचंद्र,आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि विद्वानों की प्रसिद्धि आज भी ज्यों की त्यों सजीव है ।
समाज सुधाकर व युगसृष्टा के रूप में बुद्ध,महावीर, गुरू नानक,सम्राट शिवाजी,रानी लक्ष्मी बाई,स्वामी विवेकानंद,परमकृष्ण हंस आदि ने समाज के सर्वागींण विकास पर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
देश की मिट्टी से उठती सुगंध को मापना अत्यंत कठिन है। वर्तमान में ओलंपिक खेलों में कई पदक जीत कर खेलों के प्रति बढ़ता उत्साह सराहनीय है। कृषक आज भी अपने खेत-खलिहानों में कठिन परिश्रम कर धन अर्जित कर रहा है और सरकार द्वारा लागू विभिन्न योजनाओं का लाभ भी प्राप्त कर रहा है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश में ग़रीबी लोगों की स्व: की मानसिक कमी के कारण स्थिर है। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा बनाई गई योजना के आँकड़ों से ज्ञात हुआ कि ८० करोड़ लोगों में बाँटा गया मुफ़्त में खाद्य इंगित करता है कि हमारे देश की आधी से अधिक आबादी मुफ़्तख़ोर है,लालची है या बेहद ही आलसी भी है। फ़िल्म उद्योग आज विश्व के पटल पर सूर्य के प्रकाश की तरह छाया हुआ है,तो बेरोज़गारी भी जाति व अशिक्षा व किन्हीं धार्मिक अति आस्थों से कारण रेत की तरह पसरती जनसंख्या के कारण मृगतृष्णा-सी बनी हुई है। हमारे देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की राजनीतिक व्यवस्था फ़िल्मी पटल-सी भले ही बिखरी व मनमुटाव से जुड़ी दलदलों में बंटी दिखाई देती है,परन्तु शत्-शत् नमन के साथ धन्य हैं हम,कि इस भूमि ने अब तक हमारे देश को सर्वश्रेष्ठ व सर्वगुण सम्पन्न राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ईश रुप गोद में दिए हैं। महामारी के प्रभाव में आए लोगों व आतंकी घटनाओं से शहीद हुए माँ के बेटों के लिए आओ! हम सब मिलकर अपने ऋषि-मुनियों की भाँति भारतवर्ष की भव्यता व श्रेष्ठता के लिए प्रार्थना करें-“हे प्रभो! हम सौ वर्ष तक जिएँ,हम सौ वर्षों तक मातृभूमि के शस्य-श्यामल रूप को देखते हुए अघायें।“
हे मेरे देश! तेरा किन शब्दों से गुणगान करूँ,जहाँ का गान ‘जन गण मन‘ प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता महागुरू ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ का हो और बकिंमचंद्र के अंतर्मन का नाद ‘वंदे मातरम’ हर नागरिक के माथे का तिलक और जिसका सुभाषचंद्र बोस का प्रिय नारा हो ‘जय हिंद।’

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