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११५ साल के विद्यालय में हर साल विदेशी आते हिंदी सीखने

राधा गोयल
नई दिल्ली
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उत्तराखंड मसूरी के पास बसे लंडौर के पास बने विद्यालय में आपको हिंदी सीखने वाले ‘आगे-आगे, पीछे-पीछे, ऊपर-ऊपर, नीचे-नीचे, पास-पास, दूर-दूर’ यह गाना गुनगुनाते हुए कई विदेशी चेहरे दिख जाएंगे। गाना गाकर हिंदी सिखाने वाला यह देश का सबसे पुराना और अनोखा भाषा विद्यालय है। वैसे तो, इसमें हिंदी के अलावा पंजाबी, उर्दू, संस्कृत और गढ़वाली भाषा भी सिखाई जाती है, लेकिन ८०-९० फीसदी हिंदी सीखने वाले ही होते हैं।
शुरुआत में यह विद्यालय अंग्रेजों ने मिशनरीज के लिए बनवाया था। अंग्रेजों के जाने के बाद भी कई साल तक सिर्फ मिशनरीज को ही यहाँ दाखिला दिया जाता था। यहाँ सबसे ज्यादा हिंदी सीखने वाले अमेरिका से होते हैं। हिंदी सिखाने के लिए शाला में रिकॉर्डिंग की खास व्यवस्था है। छात्र इसी से सीखते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि हम भाषा जितनी ज्यादा सुनते हैं, उतनी ही जल्दी सीखते हैं। आम विद्यालय पहले लिखना-पढ़ना सिखाते हैं, लेकिन यहाँ पहले बोलना, फिर व्याकरण और फिर लिखना सिखाया जाता है। यही नहीं, शिक्षक ऐसे तरीके ईजाद करने की कोशिश करते हैं जिससे सीखना उबाऊ न हो।
विश्वास न हो, तो कभी जाकर देखना।

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