कुल पृष्ठ दर्शन : 250

जिसकी लाठी उसकी भैंस

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************

प्रसंग-भारत रत्न ………………….
यह बात सनातन सत्य है कि,हर युग में शासकों ने अपने अपने कार्यकाल में अपने निजियों,सम्बन्धियों और विचार धाराओं वालों को उपकृत किया थाl यह जरुरी भी होता था,कारण कि वे उस शासक के भक्त-पिछलग्गू हो जाते थेl जिनको राजाश्रय मिलता था,उनका सम्मान स्वाभाविक रूप से समाज,सत्ता में बढ़ जाता थाl उनकी क़द्र भी होने लगती हैl
“स्वामीप्रसादः सम्पदं जनयति न पुनरभिजात्यम पाण्डित्यं वा!”
स्वामी की प्रसन्नता से सम्पत्ति प्राप्त होती है, कुलीनता और बुद्धिमत्ता से नहींl इसी कारण शासक लोगों के यहाँ चाटुकारों,कवियों की होड़ लगी रहती थी कि कौन कितने नजदीक पहुंचे और नवरत्नों में गिने जाएंl यह क्षेत्र इतना व्यापक होता है कि,इसमें शासक की कृपा दृष्टि होना अनिवार्य हैl राजा की प्रसन्नता बिना कुछ नहीं होता और जो राजा द्वारा दण्डित होता है,वह सब जगह से तिरस्कृत होता है,-जैसे चिदंबरमl
वर्तमान शासन इस बात पर कटिबद्ध है कि जब तक सत्तासीन है,जितने अधिक से अधिक लोगों को कृतार्थ कर दें,जिससे आगामी काल में शासक के गुणगान करने वाले पुरस्कृत तो कम से कम रहेंगेl कारण कोई भी किसी को खुश नहीं कर सकता है,जैसे गुलाब के फूल को आप प्रेमिका के गालों में सैंकड़ों बार रगड़ो तो उसे घाव हो जाएगाl हालांकि,वह गुलाब का फूल हैl इसी प्रकार सरकार से सब खुश नहीं रह सकते,विपक्ष तो कभी नहीं,पर पक्षधर भी नहीं हो पातेl
जिनको मंत्री पद दिया गया था,उनका पत्ता साफ़ कर दिया गया तो वे अप्रत्यक्ष में नाराज़ हो जाते हैंl इसका मतलब संतुष्टि की कोई सीमा या बंधन नहीं हैl वर्तमान में सरकारी सम्मान बहुत दरियादिली से बांटे या दिए जा रहे हैं,इस कारण उनका महत्व कुछ कम होता जा रहा हैl राजनीतिक,सामाजिक,साहित्यिक,धार्मिक और विज्ञानिक क्षेत्रों में काम करने वाले बहुत होते हैं,पर सबको सम्मानित करना संभव नहीं है,किन्तु उनको सम्मान मिल जाता है,जो केन्द्र के नजदीक होते हैं,अन्यथा परिधि में तो सभी चक्कर लगा रहे हैंl
अब तो सरकार भारत के सर्वोच्च सम्मान उनको भी देने में चूक नहीं कर रही है,जिनकी तत्समय शासन के विरोध में गतिविधियां रही और जिनको उस कारण कारावास भोगना पड़ाl वर्तमान में उस विचारधारा के कारण वे पूजनीय हो गए,इस आधार पर सरकार चाहे तो अपनी विचार धारा को मानने वालों को कृतार्थ करने में कोई विलम्ब न करेl सरकार के पास लगभग १००-१५० वर्ष का पूरा इतिहास है,उनमें से चुनाव करना संभवतः कठिन नहीं होगाl
अभी बहुत समय है सरकार के पास,कारण कि वर्तमान सरकार को लगभग ५० वर्ष तक शासन करने का लक्ष्य हैl उस अवधि तक भारत देश पुरस्कार-सम्मान प्रधान देश माना जाएगा,और जो पुरस्कृत होंगे वे निश्चित ही सरकार के कृपा पात्र रहेंगेl जो स्वर्गीय हो चुके हैं,उनको भी पुनर्जीवित किया जा सकेगाl हम नित-नए नामों की सूची का इंतज़ार करेंगेl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply