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‘नोटा’ के विकल्प की जरूरत

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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 विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बहुत दिनों से ‘नोटा'(इनमें से कोई नहीं) की सुविधा पर काफी बहस चल रही है़,पर चुनाव आयोग ने यह प्रावधान रखा होता कि यदि किसी चुनाव क्षेत्र में ५० हजार या १ लाख लोगों ने नोटा दबाया तो वहाँ दुबारा चुनाव कराए जाएंगे। तब तो नोटा दबाया जा सकता है,पर ऎसा कोई प्रावधान नहीं है।
इस प्रकार इसके प्रयोग का अर्थ है अपने मत को निष्क्रिय कर देना। इसके प्रयोग का अर्थ है,जिसे हम जिता सकते थे उसको ‘मत’ न देकर हमने अप्रत्यक्ष रूप से उसके विरोधी उम्मीदवार को जिताने में मदद की। ऐसा करते हुए हमने क्या यह सोचा कि,विरोधी उम्मीदवार हमारी उम्मीदों पर खरा उतरेगा ?
       भारतीय राजनीतिक,लोकतांत्रिक व्यवस्था का यह कड़वा सच है कि,जो जाति,वर्ग,धर्म,सम्प्रदाय  समर्थित राजनीतिक दल सत्ता में होता है वह दल अपने समर्थक समुदाय को ही उपकृत करता है।
जो समुदाय उसके विरोधी होते हैं उनके विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हुए उन के खिलाफ कानून बनाए जाते हैं,उनके क्षेत्र के विकास को बाधित किया जाता है। 
    इस प्रकार आजादी से लेकर आज तक के ७० वर्षों में सवर्ण समाज को अपनी राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण,संवैधानिक रूप से दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है,और आर्थिक, सामाजिक,शैक्षणिक,धार्मिक,राजनीतिक दृष्टि से  हर स्तर पर शोषित और प्रताड़ित किया जा रहा है।
ऐसी स्थिति में समाज को अपने अस्तित्व रक्षा के लिए पंचायत,प्रखंड,जिला,राज्य,केन्द्र,हर स्तर पर अपने समुदाय के राजनीतिक वर्चस्व के लिए प्राण-पण से प्रयत्न करना चाहिए। यह कार्य वर्तमान लोकतांत्रिक प्रक्रिया,चुनावों में योजना बना कर निभा कर ही किया जा सकता है,न कि पलायनवादी बन और नोटा दबा कर। स्वयं अपने और अपने समाज को राजनीतिक दृष्टि से हाशिए पर लाकर आत्मघाती गोल करने से बचना होगा।
   यदि हम अपने क्षेत्र में संगठित और एकजुट हैं तो अपने समुदाय में अपना एक सर्वसम्मत उम्मीदवार को खड़ा करें और उसे पूर्ण समर्थन देकर जिताने का प्रयास करे। ऐसे क्षेत्रों में आरक्षित सीटों पर भी ऐसे गरीब और वंचित व्यक्ति को चुनाव मे उतारा जा सकता है,जो छले गए हैं। 
 यदि सवर्ण समाज भाजपा को हराने के लिए नोटा का प्रयोग करता है तो दूसरे दल सत्ता में आ जाएंगे।
अस्तु,सवर्ण समाज के लिए एक सशक्त राजनीतिक विकल्प की महती आवश्यकता है। इसमें असली वंचित,शिक्षित व पीड़ित दलित भाइयों का भी साथ मिल सकता है। यह काम लग कठिन जरूर रहा है लेकिन हमारे सामने अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के ज्वलंत उदाहरण हैं। हम इनकी नीतियों का समर्थन नहीं करते,लेकिन इनकी संघर्ष क्षमता को नकारा नहीं जा सकता। जिस तरह दोनों बिना किसी राजनीतिक पृष्ठ भूमि के अपना स्थान बना पाए हैं,वह काबिले तारीफ है।

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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