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अबकी बार होली में

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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जीवन और रंग

फिर सुख-समृद्धि आएगी, अबकी बार होली में,
नई क्रान्ति भी लाएगी, अबकी बार होली में।

आम्र मंजरी महक उठेंगे,
पंछी सारे चहक उठेंगे
पुरवैया की मंद बयार से,
खलिहान भी लहक उठेंगे
बाग में कलियां शर्माएंगी, अबकी बार होली में।
नई क्रान्ति भी लाएगी, अबकी बार होली में…

रंग बरसता रहे प्रगति का,
भाईचारे औ उन्नति का
मन गुलाल से रंग जाएगा,
नव विकास की गति का
चहुंओर ध्वजा लहराएगी, अबकी बार होली में।
नई क्रान्ति भी लाएगी, अबकी बार होली में…

फागुन का मदमस्त महीना,
उल्लासित होकर है जीना
जो सुख है इस मौसम में,
मिलेगा तुमको और कहीं ना
फाग गीत धरती गाएगी, अबकी बार होली में।
नई क्रान्ति भी लाएगी, अबकी बार होली में…

फागुन के मौसम का आना,
नई चेतना पुनः जगाना
प्रेम रंग की वर्षा से,
नई सृष्टि का रूप दिखाना।
धरती खुद को महकाएगी, अबकी बार होली में,
नई क्रान्ति भी लाएगी, अबकी बार होली में…॥

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