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‘आप अनपढ़ हो…?’

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आज तक मैंने जिस कार्यालय में भी काम किया है,वहाँ यह कोशिश की कि लोग अंग्रेजी का मोह त्याग सकें और हिंदी को प्रोत्साहन मिले। एक कार्यालय में जनसंपर्क बहुत ज्यादा होता था। आजकल लोगों को अंग्रेजी बोलने का कुछ ज्यादा ही शौक चर्राया हुआ है। जो आता…चटर-पटर अंग्रेजी में बोलता। मैं उससे पूछती, “आप अनपढ़ हो ?”
“नहीं! हम तो पढ़े-लिखे हैं।”
“यदि आप पढ़े-लिखे हैं तो मैं चाहूँगी कि आप हिंदी में बात करें। यदि अनपढ़ हैं तो कोई बात नहीं, अंग्रेजी में बात कर सकते हैं।”
यह सुनकर इतना शर्मिंदा होते थे कि धीरे-धीरे अंग्रेजी में बात करने की आदत ‘त्याग’ दी और हिंदी में बात करने की आदत डाल ली। रोजाना कम से कम ३०० लोगों से वास्ता पड़ता था।
कमरे में हमने एक गुल्लक रख ली थी। एक कमरे में हम ५ लोग बैठते थे। सभी से कहा कि अंग्रेजी त्यागो और अपनी भाषा में बात करो। जो भी अंग्रेजी में बोलेगा वो एक शब्द का ₹1 जुर्माना देगा। आमतौर से अंग्रेजी के बहुत सारे शब्द ऐसे हैं, जो हमारी आम बोलचाल की भाषा में इस तरह से घुल-मिल गए हैं कि हमें यह पता नहीं लग पाता कि यह अंग्रेजी का शब्द है या हिंदी का शब्द है। उसके लिए मैंने उन्हें बोल दिया कि स्कूल को विद्यालय, ट्रेन को लौह पथगामिनी,साइकिल को द्विचक्र वाहिनी बोलने की जरूरत नहीं है। इन शब्दों को स्कूल,ट्रेन,साइकिल बोल सकते हो,लेकिन बीच- बीच में बेमतलब के अंग्रेजी शब्द बोलने की सख्त मनाही है।
उन दिनों बड़ा मजा आता था। कोई ना कोई बेध्यानी में अंग्रेजी का शब्द बोल देता था और मैं उसके नाम के आगे १+१ +१+१+१ लिखती रहती थी और शाम को उसे उसी हिसाब से गुल्लक में पैसे डालने पड़ते थे। हँसते-हँसते काम करते-करते दिन कैसे बीत जाता था,मालूम ही नहीं पड़ता था। अब तो सभी को इसमें बड़ा मजा आने लगा था और मुझे भी अच्छा लगा कि इसी बहाने खेल-खेल में और मजे लेकर अपनी राष्ट्रभाषा के संवर्धन में कुछ योगदान कर रहे हैं।
हमारे ही कार्यालय में एक दक्षिण भारतीय सहयोगी भी थे। वैसे हिंदी समझ भी लेते थे और बोल भी लेते थे। एक दिन किसी के विवाह का निमन्त्रण पत्र आया था। कार्यालय में पूरे स्टॉफ के नाम से एक ही निमंत्रण पत्र दिया जाता था और पूरे स्टाफ की तरफ से शगुन इकट्ठा करके स्टाॅफ सेक्रेट्री २-४ लोगों के साथ शगुन दे आता था।
जिस दिन शादी थी,उस दिन हमारे उन दक्षिण भारतीय सहयोगी ने काम करते-करते अचानक पूछा-“मैडम आज कितने बजे का क्रियाकर्म है ?”
मैं एकदम घबरा गई कि हमारे किस साथी के साथ ऐसा क्या कुछ घटा है कि मुझे मालूम तक नहीं है। घबराते हुए मैंने उससे कहा,-“बता क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं हुआ मैडम। बस यह पूछ रहा हूँ कि कितने बजे का क्रियाकर्म है ?”
“अरे पहले यह तो बता कि किसको क्या हुआ है ? जल्दी बता। अब घबराहट शुरू हो गई है।”
“इसमें घबराने की क्या बात है ?”
“अरे भई! जल्दी बता कि किसको क्या हुआ है ? साँस गले में अटकी हुई है।”
मेरी घबराहट देखकर बोला,-“मैडम जी! वो परसों जो शादी का कार्ड आया था ना,उसका क्रियाकर्म कितने बजे का है,वह पूछ रहा हूँ।”
तब बात समझ में आई और मुझे बड़ी हँसी भी आई। मुझे हँसते हुए देखकर उसने पूछा कि,-“मैडम इसमें हँसने वाली क्या बात है ? आपको इतनी हँसी क्यों आ रही है ?”
“तुमने बात ही ऐसी की है हँसने वाली।”
“क्यों ? मैंने ऐसी क्या बात की है जो आपको इतनी हँसी आ रही है?”
“तुमने जो कहा,यदि वही शब्द तुम शादी वाले घर में जाकर बोलोगे तो बेटा तुम्हें मार-मारकर बिल्कुल टकला करके ही भेजेंगे।”
“क्यों मारेंगे ? जो आप कह रही हैं,वही तो मैं भी कह रहा हूँ।”
“शादी के कार्यक्रम को कार्यक्रम कहते हैं, क्रियाकर्म नहीं कहते।”
“वही तो मैं भी कह रहा हूँ जो आप कह रही हैं… क्रियाकर्म।”
” क्रियाकर्म नहीं, कार्यक्रम।”
” वही तो कह रहा हूँ… क्रियाकर्म।”
“अच्छा बाबा! माफ करो। तुम प्रोग्राम बोलो।”
“फिर आप जुर्माना लगा दोगी।”
“इस बात का तुम्हारा जुर्माना माफ। आगे से याद रखना कि कभी भी किसी की शादी हो तो यह पूछना कि क्या प्रोग्राम है। तुम पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा।”
मेरा मानना है कि ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों से हम अपनी भाषा का संवर्धन कर सकते हैं।

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