कुल पृष्ठ दर्शन : 5

You are currently viewing आर्थिक असमानता दूर करने का लक्ष्य हो सरकार का

आर्थिक असमानता दूर करने का लक्ष्य हो सरकार का

ललित गर्ग

दिल्ली
***********************************

भारत एक ओर जहां लगातार तेज वृद्धि करते हुए बीते दिनों जापान को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना, वहीं उपलब्धियों का सिलसिला जारी है औऱ दुनिया इसका लोहा मान रही है। अब एक और खुश करने वाली रिपोर्ट आई है, जो विश्व बैंक ने जारी की है, जिसमें भारत में अत्यधिक गरीबी में आई उल्लेखनीय कमी की रोशनी है। आँकड़ों के अनुसार वर्ष २०२२-२३ में यह दर ५.३ प्रतिशत रह गई है, जो वर्ष २०११-१२ में २७.१ फीसदी थी। रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार भारत ने लगभग एक दशक से कुछ कम समय में २७ करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है, जो पैमाने और गति के मामले में उल्लेखनीय एवं ऐतिहासिक उपलब्धि कही जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शासन के ११ स्वर्णिम वर्षों में गरीबी को कम करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। गरीबों के संघर्षों और उनकी चिंताओं को सुनकर मदद करके और अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करके गरीब उन्मूलन की योजनाओं को जमीन पर उतारा है। उनकी दृष्टि में गरीबी को खत्म करना सिर्फ़ गरीबों की मदद करना नहीं है-बल्कि हर महिला और पुरुष को सम्मान के साथ जीने का मौका देना है।
विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए चलाई जा रही सरकारी पहलों, तेज आर्थिक सुधारों और जरूरी सेवाओं तक सबकी पहुंच का ही यह नतीजा है कि गरीबी दिन-ब-दिन तेजी से घट रही है। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार में वृद्धि हुई है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में भी जबरदस्त प्रगति की है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) २००५-०६ में ५३.८ प्रतिशत से घटकर २०१९-२१ में १६.४ प्रतिशत और २२-२३ में १५.५ प्रतिशत हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को गरीबी से उबारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों और सशक्तीकरण, बुनियादी ढांचे और समावेशन पर फोकस पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना और आयुष्मान भारत जैसी पहलों ने आवास, स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन, बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच को बढ़ाया है।
डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर, डिजिटल समावेश और मजबूत ग्रामीण बुनियादी ढांचे ने अंतिम जन तक लाभों की पारदर्शिता और तेज वितरण सुनिश्चित किया है। इससे २५ करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी पर पार पाने में मदद मिली है। अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या ३४.४४ करोड़ से घटकर ७.५२ करोड़ रह गई है। पूरे भारत में अत्यधिक गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसमें प्रमुख राज्यों ने गरीबी में कमी लाने और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ५ बड़े राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और बंगाल में २०११-१२ में देश के ६५ फीसदी अत्यंत गरीब लोग थे। इन राज्यों ने ही २३ तक गरीबी कम करने में दो-तिहाई का योगदान दिया है।
विश्व बैंक ने पाकिस्तान को आईना दिखाते हुए भारत से गरीबी उन्मूलन की योजनाओं एवं सोच से प्रेरणा लेने की बात कही है। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान की गरीबी दर ४२.४ प्रतिशत है। इसका सबसे बड़ा कारण पाक अपना सारा ध्यान आतंकवाद एवं आतंकवादियों के पोषण पर देता है, गरीबी दूर करना उसकी योजनाओं एवं नीतियों में दूर-दूर तक नहीं है।
गरीबी किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का हनन है। यह न केवल अभाव, भूख और पीड़ा का जीवन जीने की ओर ले जाती है, बल्कि मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं के आनंद का भी बड़ा अवरोध है। पाक में यही स्थितियाँ देखने को मिल रही है।
आजादी के अमृत काल में सशक्त भारत एवं विकसित भारत को निर्मित करते हुए गरीबमुक्त भारत के संकल्प को भी आकार दिया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने २०४७ के आजादी के शताब्दी समारोह के लिए जो योजनाएं एवं लक्ष्य तय किए हैं, उनमें गरीबी उन्मूलन के लिए भी व्यापक योजनाएं हैं। विगत ११ वर्ष के कार्यकाल में भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए हैं एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है। निश्चित रूप से इस उपलब्धि में विभिन्न कल्याण कार्यक्रमों मसलन आर्थिक विकास और ग्रामीण रोजगार योजनाओं की बड़ी भूमिका रही है। निस्संदेह, इसने सबसे गरीब तबके के लोगों की आय बढ़ाने में मदद की है। निश्चित रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, बिजली, शौचालयों और आवास तक इस तबके की पहुंच बढ़ाने जैसी पहल ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत में जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने में योगदान दिया है, लेकिन हम गरीबी उन्मूलन में मिली सफलता पर आत्ममुग्ध हैं, तो वहीं समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। गरीबी-अमीरी के बीच के बढ़ते फासले को कम करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। विश्व असमानता रिपोर्ट (२०२२) से पता चलता है कि भारत में शीर्ष १ प्रतिशत लोगों की संपत्ति में बड़ा उछाल आया है। वे लोग देश की ४० फीसदी संपत्ति नियंत्रित करते हैं।

भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, भ्रष्टाचार, रूढ़िवादी सोच, जातिवाद, अमीर-गरीब में ऊँच-नीच, नौकरी की कमी, अशिक्षा व बीमारी आदि हैं। एक आजाद मुल्क में एक शोषणविहीन समाज में, एक समतावादी दृष्टिकोण में और एक कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था में गरीबी रेखा नहीं होनी चाहिए। अब तक यह रेखा उन कर्णधारों के लिए शर्म की रेखा बनी रही है, जिसको देखकर उन्हें शर्म आनी चाहिए थी। एक बड़ा प्रश्न था कि जो रोटी नहीं दे सके वह सरकार कैसी ? जो अभय नहीं बना सके, वह व्यवस्था कैसी ? जो इज्जत व स्नेह नहीं दे सके, वह समाज कैसा ? गांधी और विनोबा ने सबके उदय एवं गरीबी उन्मूलन के लिए ‘सर्वोदय’ की बात की, लेकिन राजनीतिज्ञों ने उसे निज्योदय बना दिया था। ‘गरीबी हटाओ’ में गरीब हट गए। अब तक जो गरीबी के नारे को जितना भुना सकते थे, वे सत्ता प्राप्त कर सकते थे, लेकिन अब मोदी सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए सार्थक प्रयत्न कर रही है। वर्ष २००० के बाद विकास प्रारूप ने गरीब वर्ग को लाभान्वित किया है। निर्विवाद रूप से सामाजिक न्याय के लिए गरीबी कम करने के साथ, कमजोर तबकों के लिए सम्मान, समानता और नीतियों में लचीलापन जरूरी है। वास्तव में गरीबी मुक्त भारत का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है, जब कल्याणकारी नीतियाँ न केवल उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकालें, बल्कि उन्हें स्वावलंबी भी बनाएं। आर्थिक कल्याणकारी नीतियों का मकसद मुफ्त की रेवड़ियाँ बांटना न होकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना होना चाहिए। तभी गरीबी का कुचक्र स्थायी रूप से कम किया जा सकता है।