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इंसानियत की ऊंची मिसाल

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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गुजरात में सावरकुंडला के एक मुस्लिम परिवार ने इंसानियत की बहुत ऊंची मिसाल कायम कर दी है। मियां भीखू करैशी और भानुशंकर पंडया,दोनों मजदूर थे। चालीस साल पहले एक ही जगह मजदूरी करते-करते दोनों की दोस्ती हो गई। पंडया ने शादी नहीं की। वे अकेले रहते थे। कई साल पहले उनका पांव टूट गया। वे बड़ी तकलीफ में रहते थे। उनके दोस्त कुरैशी ने आग्रह किया कि वे कुरैशी परिवार के साथ रहा करें। पंडया मान गए,साथ रहने लगे। कुरेशी के तीन लड़के थे-अबू,नसीर और जुबैर। तीनों की शादी हो गई,बच्चे हो गए। ये बच्चे पंडया को बाबा कहते थे और कुरैशी की बहुएं रोज सुबह उठकर पंडया के पांव छूती थीं। पंडया के लिए रोज़ अलग से शुद्ध शाकाहारी भोजन बनता था। तीन साल पहले भीखू कुरैशी की मृत्यु हो गई। यह घटना उनके परम मित्र भानुशंकर पंडया के लिए बड़ी हृदय-विदारक सिद्ध हुई। उनका दिल टूट गया,वे बीमार रहने लगे। इस पूरे परिवार ने पंडयाजी की सेवा उसी लगन से की,जैसे कुरैशी की की थी। पिछले हफ्ते जब पंडया का अंत समय आ पहुंचा तो उन्हें गंगाजल मंगवाकर पिलवाया गया। जब उनका निधन हुआ तो कुरैशी-परिवार ने तय किया कि उनको वैसी ही अंतिम बिदाई दी जाएगी,जो किसी ब्राह्मण को दी जानी चाहिए। इस मुस्लिम परिवार के बच्चे अरमान ने नई धोती और जनेऊ धारण की और अपने ‘हिंदू-बाबा’ का शनिवार को दाह-संस्कार किया,कपाल-क्रिया की। यह परिवार है,जो दिन में पांच बार नमाज पढ़ता है और बड़ी निष्ठा से रोजे रखता है। दाह-संस्कार करनेवाले बच्चे अरमान ने कहा है कि वह अपने ‘दादाजी’ की १२वीं पर अपना मुंडन भी करवाएगा। यह विवरण जब मैंने एक अखबार में पढ़ा तो मेरी आँखें भर आईं। सोचने लगा कि कुरैशी परिवार द्वारा ऐसा आचरण क्या इस्लाम के खिलाफ है ? यदि मैं किसी मुल्ला-मौलवी से पूछता तो वे कहते कि यह कुरैशियों की काफिराना हरकत है। यह इस्लाम के खिलाफ है। बिल्कुल यही बात हिंदू पोंगा पंडित भी कहते,यदि कोई पंडया-परिवार किसी कुरैशी या अंसारी को ऐसी ही अंतिम बिदाई देता तो,लेकिन मज़हबों के इन ठेकेदारों से पूछता हूँ कि क्या धर्म का मर्म इन कर्मकांडों में ही छिपा है ? क्या धर्म याने भंगवान और इंसान के रिश्तों में इन रीति-रिवाजों का ही महत्व सबसे ज्यादा है ? क्या ईश्वर,अल्लाह,यहोवा और भगवान को देश और काल की बेड़ियां पहनाई जा सकती हैं ? कुरैशी परिवार ने इन बेड़ियों को तोड़ा है। उसने इस्लाम की इज्जत बढ़ाई है,उसे बधाई…।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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