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इंसान से इंसान को जोड़ने के लिए योग

ललित गर्ग
दिल्ली

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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस २१ जून विशेष….

योग दिवस का अर्थ है मानवता के लिए योग। इंसान से इंसान को जोड़ने के लिए योग को माध्यम बनाया जा रहा है। योग के महत्व को लेकर भारत के प्रयासों के चलते दुनियाभर के देशों ने विश्व स्तर पर योग दिवस मनाना शुरु किया। भारतीय योग एवं ध्यान के माध्यम से भारत दुनिया में गुरु का दर्जा एवं एक अनूठी पहचान हासिल करने में सफल हो रहा है। इसीलिए समूची दुनिया के लिए अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस स्वीकार्य हुआ है।
योग दिवस की अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सूझबूझ एवं प्रयासों से अपूर्व वातावरण बना है। आज महामारी, महायुद्ध, आतंकवाद, बढ़ती महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी के कारण जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा हुआ है, जिसके कारण हर व्यक्ति एवं परिवार दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव-दबाव महसूस कर रहा है। हर आदमी संदेह, अंतर्द्वंद् और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मनुष्य के सम्मुख जीवन का संकट खड़ा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीक है, विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। जब हम योग करते हैं, श्वांसों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिए प्रेरित करती है। योग जीवन की अस्त-व्यस्तता एवं तनावों से मुक्ति का सशक्त माध्यम है।
योग मनुष्य की चेतना को शुद्ध एवं बुद्ध करने की प्रक्रिया है, यह मनुष्य को ऊपर उठाने का उपक्रम है एवं परमात्मा-परम ब्रह्म से एकाकार होने का विज्ञान है। ब्रह्म का साक्षात्कार ही जीवन का काम्य है, लक्ष्य है। यह साक्षात्कार न तो प्रवचन से ही प्राप्त हो सकता है, न बुद्धि से, और न बहुत सुनने से ही प्राप्त हो सकता है, उसके लिए जरूरी है स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार और यह साक्षात्कार उसी को होता है जिसका अंतःकरण निर्मल और पवित्र है। पवित्र अंतःकरण ही वह दर्पण है जिसमें आत्मा का दर्शन, प्रकृति का प्रदर्शन और ब्रह्म का संदर्शन होता है। जैसे शीशे में चेहरा तभी दिखलाई पड़ता है जबकि शीशा साफ और स्थिर हो, इसी प्रकार शुद्ध अंतःकरण से ही परम ब्रह्म के दर्शन होते हैं। योग व्यायाम का ऐसा प्रभावशाली प्रकार है, जिसके माध्याम से न केवल शरीर के अंगों बल्कि मन, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है। यही कारण है कि योग से शारीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है।
कोरोना महासंकट के कारण योग की उपयोगिता पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। इसके फायदों को देखते हुए हर कोई अपनी भागती हुई जिंदगी एवं जीवन संकट में इसे अपनाता हुआ दिख रहा है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि योग करने से ना केवल बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है बल्कि अपने जीवन में खुशहाली भी लाई जा सकती है, कार्य-क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है, अमन को स्थापित किया जा सकता है।
शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शांति एवं स्वस्थ्यता के लिये योग की एकमात्र रास्ता है, लेकिन भोगवादी युग में योग का इतिहास समय की अनंत गहराइयों में छुप गया है। वैसे कुछ लोग यह भी मानते हैं कि योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है। हड़प्पा और मोहन जोदड़ों के समय की पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में अनेक ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिसमें शिव और पार्वती को विभिन्न योगासन करते हुए दिखाया गया है। दुनिया में भारतीय योग को परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानंद कहते हैं-‘‘निर्मल हृदय ही सत्य के प्रतिबिम्ब के लिए सर्वोत्तम दर्पण है। इसलिए सारी साधना हृदय को निर्मल करने के लिए ही है। जब वह निर्मल हो जाता है तो सारे सत्य उसी क्षण उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं।…पावित्र्य के बिना आध्यात्मिक शक्ति नहीं आ सकती। अपवित्र कल्पना उतनी ही बुरी है, जितना अपवित्र कार्य।”
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति के ‘युज’ से हुई है, जिसका मतलब होता है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन। योग लगभग १० हजार साल से भी अधिक समय से अपनाया जा रहा है। वैदिक संहिताओं के अनुसार तपस्वियों के बारे में प्राचीन काल से ही वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म में साधु, संन्यासियों व योगियों द्वारा योग सभ्यता को शुरू से ही अपनाया गया था, परंतु आम लोगों में इस विधा का विस्तार हुए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। बावजूद इसके योग की महिमा और महत्व को जानकर इसे स्वस्थ जीवन-शैली हेतु बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है, जिसका प्रमुख कारण है व्यस्त, तनावपूर्ण और अस्वस्थ दिनचर्या में इसके सकारात्मक प्रभाव।
जब मानव अपनी आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं को सुलझाने अथवा समाधान पाने के लिए योग का आश्रय लेता है तो वह योग से जुड़ता है, संबंध बनाता है, जीवन में उतारने का प्रयास करता है, किन्तु जब उसके बारे में कुछ जानने लगता है, जानकर क्रिया की प्रक्रिया में चरण बढ़ाता है तो वह प्रयोग की सीमा में पहुंच जाता है। इसी प्रयोग की भूमिका को जीवन का अभिन्न अंग बनाकर हम मानवता को एक नई शक्ल दे सकते हैं।
योग केवल सुंदर एवं व्यवस्थित रूप से जीवन-यापन करना ही नहीं सिखाता, अपितु व्यक्तित्व को निखारने, साम्प्रदायिक सौहार्द, सुशासन एवं संतुलित जीवन की कला को भी सिखाता है। योग के नाम पर राजनीति करने वाले मानवता का भारी नुकसान कर रहे हैं, क्योंकि योग किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति या भाषा से नहीं जुड़ा है। योग का अर्थ है जोड़ना, इसलिए यह प्रेम, अहिंसा, करुणा और सबको साथ लेकर चलने की बात करता है। यह सभी धर्मों से पहले अस्तित्व में आया और इसने मानव के सामने अनंत संभावनाओं को खोलने का काम किया। आंतरिक व आत्मिक विकास, मानव कल्याण से जुड़ा यह विज्ञान सम्पूर्ण दुनिया के लिए एक महान तोहफा हैl

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