हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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यहां तुलसी पूजन, वहां क्रिसमस डे,
दिन एक पर धारणाएं लहदी-लहदी है
यह जाड़े का शुष्क पतझड़ का मौसम,
तुलसी तो इस मौसम की परमौषधि है।
बनावट का हर साजो-सामान कहां देगा ?
राहत सर्दी-गर्मी और आधी व्याधि से
चन्द लोगों के पर्व मानना कोई दोष नहीं,
वे हमारे न मनाएं, है धोखा घनी आबादी से।
क्यों लगाए बैठे हैं आस कि पौधा,
प्लास्टिक का ऑक्सीजन छोड़ेगा।
वह तो तुलसी में ही क्षमता है साहेब,
जो रोग,शोक, दु:ख संताप को तोड़ेगा।
अपनी संस्कृति और सभ्यता तो यारों,
आखिर अपनी है और अपनी ही होती है
क्रिसमस के फेर में भूल के पूजा तुलसी की,
यह भारत की सनातनी सभ्यता कहां खोती है ?
अब हो गया दौर बहुतेरा भूल-भूलैया का,
अपनी रीत पर फिर से लौट के आना होगा
जो जागे हैं आज, वे तो जागते ही रहना,
पर जो सोए हैं, उन्हें भी जागना होगा।
हो गई दरियादिली बहुतेरी है आज तक,
अब संस्कृति-सभ्यता का गुण-गाना होगा
धर्म-निरपेक्षता के सुन्दर लिबास में हमको,
अपने धर्म की हर रसम को निभाना होगा।
कहीं भूल न जाए हमारी औलादें सब कुछ,
इतना भी पछुआ अंधानुकरण भला नहीं है।
बस सुरक्षित रहे हमारा भी सनातन जग में,
बाकी हमें किसी का कुछ भी खला नहीं है॥