हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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शहर की आपा-धापी से बहुत दूर घने पेड़ों की छाँव में बसा है, मेरा छोटा-सा गाँव, जहाँ जगह-जगह देव स्थलियाँ हैं। भांति-भांति के मंदिर हैं और उनको पूजने वाले बहुत से श्रद्धालु दूर-दूर से गाँव में दस्तक देते हैं।
गोकल गाँव का एकमात्र ऐसा कलाकार लोहार है, जिसकी कलाकृतियों से आस-पड़ोस के गाँव तक के मंदिरों की भी शोभा लंबे समय से होती आई है। मेरे गाँव की तो बात ही क्या ? उसके एक जवान और इतनी सुंदर सुशील लड़की है, कि देखते ही रह जाए। नाम कोमल है। सचमुच ही वह इतनी सुंदर और कोमल है, कि किसी भी जवान गबरू को बहुत प्यारी लगने लगती है। गनीमत यह है, कि मेरे गाँव में बेटियों के प्रति शहर की तरह छीना-झपट और वासनिक व्यवहार नहीं किया जाता। इसलिए वह हर ओर से महफूज है, उसे कोई नहीं छेड़ता।
ठाकुर दादा का पोता रूपलाल उस रोज हमारे यहाँ आया था। मंदिर में आते-जाते वक्त कोमल और रूपलाल की आँखें आपस में भिड़ गई होगी और दोनों के दिलों में मोहब्बत की आग बराबर लग गई है।
मुझसे कहता है,”तुम तो पढ़े- लिखे और एक नेक इंसान हो काका। तुम ही बताओ, कि प्यार करना कोई गुनाह है क्या ?”
“नहीं तो!” मैंने कहा।
“तो फिर पापा-मम्मी क्यों कोमल से मुझे शादी करने नहीं देते ? मुझसे कहते हैं, कि तुझको वही हरिजन की बेटी ही नजर आई। काका उसके बाबा हर मंदिर की मूर्तियों को अपने हाथों से बनाते हैं और हम उन मंदिरों की मूर्तियों को थोड़ा-सा तंत्र-मंत्र करके शुद्ध क्या कर देते हैं, बस फिर वह मूर्ति पवित्र हो जाती है और उस बेचारे तक को उसे छूने नहीं दिया जाता। कला उसकी, कारीगरी उसकी और अधिकार हमारा। वाह! कैसी विडंबना ?”
“बेटा छोड़ भी न इन बातों को। माता-पिता की बात को टाला नहीं करते। तेरे लिए कोई और सुंदर लड़की देख लेंगे। कोमल का ख्याल मन से निकाल दे।” मैंने कहा ।
“आप भी चाचा! मैं तो आपके पास यह उम्मीद लेकर के आया था, कि आप मम्मी-पापा को समझाएंगे कि जात-पात कुछ नहीं होती। यह तो इंसानी जहन की खुराफात है। कुदरत ने सबको एक सी संरचना और बनावट दी है, बस रंग रूप अलग-अलग है, पर आप भी वही कहने लगे हैं।”
“बेटा कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो सदियों से बार-बार समझाने के बाद भी समाज की समझ में नहीं चढ़ती। उनका उल्लंघन करने पर समाज लड़ने-भिड़ने पर उतारू हो उठता है। फिर मेरे समझाने से भला कौन समझेगा ?” मैंने रूपलाल को समझाते हुए कहा।
“चाचा इश्क कोई बनावटी चीज नहीं है। यह तो बस एक बार हो जाता है। फिर यह न तो जात-पात की बंदिशों को मानता है, न ही धर्म की दीवार को। आप भी मेरा साथ नहीं देना चाहते, तो कोई बात नहीं।”
उस रोज वह रूठ कर चला गया। मैंने समझाया भी, कि कोई गलत कदम मत उठाना बेटा। यह बेरहम समाज जीने नहीं देगा। २-४ रोज बाद पता चला, कि रूपलाल और कोमल गाँव से भाग गए हैं। वे उस दिन से आज तक लौट कर वापिस नहीं आए। गाँव वालों में उनके प्रति खासा रोष है, पर किसको समझाएं, कि इश्क़ पर किसी का जोर नहीं चलता।
आखिर क्यों जात-पात का बखेड़ा करके इंसान को इंसान से अलग करने की कोशिश की जाती है ? कुछ समझ नहीं आता। नयी पीढ़ी है, नयी सोच, नया खून। यह तो कुछ नया करेंगे ही और करना भी चाहिए। आखिर कब तक हम हिंदुस्तान को जात-पात और धर्म-संप्रदायों के चंगुल में फंसाकर रखेंगे ?