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ईरान-इजरायल युद्ध:भारत के हितों पर चोट

ललित गर्ग

दिल्ली
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इजरायल ने ईरान के ‘परमाणु कार्यक्रम ठिकानों’ पर अचानक हमला करके न सिर्फ दुनिया को चौंका दिया है, बल्कि पश्चिमी एशिया के पूरे क्षेत्र को अनिश्चितता, भय, अशांति एवं संकट के भंवर में डाल दिया है। ईरान जवाबी कार्रवाई करते हुए इजरायल को करारा जवाब दे रहा है। जहां इस्राइल इन हमलों को अपने अस्तित्व को बचाने की कार्रवाई बता रहा है, वहीं ईरान जवाबी कार्रवाई कर शीघ्र बदला लेने की बात कर रहा है, लेकिन इन दो राष्ट्रों के संघर्ष एवं युद्ध में समूची दुनिया पिस रही है। एक और युद्ध से दुनिया में विकास का रथ थमेगा, महंगाई बढ़ेगी, तेल के दाम आसमान छूने लगेंगे, व्यापक जनहानि होगी। युद्ध कभी भी किसी के हित में नहीं होता, आखिर समझौते के लिए टेबल पर बैठना ही होता है, तो पहले ही टेबल पर क्यों न बैठा जाए ? विनाश एवं सर्वनाश करने के बाद युद्ध विराम करना कैसे बुद्धिमत्ता है ?
हमलों का विनाशकारी रूप भी इसकी गंभीरता को स्पष्ट कर देता है कि हवाई हमलों के तहत ईरान के परमाणु कार्यक्रम ठिकानों को निशाना बनाया गया।
इजरायली कार्रवाई के वैश्विक दुष्प्रभावों का संकेत इसी एक तथ्य से मिल जाता है कि पहले हमले के कुछ घंटों के अंदर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें १३ प्रतिशत बढ़ गईं। दुनिया के शेयर बाजार धराशायी हो गए हैं। इसमें दो राय नहीं कि इजरायल लंबे समय से कहता रहा है कि ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से हर हाल में रोका जाए और जरूरी हो तो उसके लिए बल प्रयोग से भी हिचका न जाए। एक भयानक संशय का वातावरण बना हुआ है। पहले रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमाम, कुछ समय भारत-पाक और अब इजरायल-ईरान के बीच युद्ध की स्थितियाँ बनना विश्व युद्ध की संकटपूर्ण स्थितियों को बल दे रही है। संशय से भरा हुआ आदमी प्रेम एवं मानवीयता से खाली होता है। पारस्परिक स्नेह, सद्भाव, सौहार्द और विश्वास के अभाव में उसका संदेहशील मन सदैव युद्ध, हिंसा, सुरक्षा के साधन जुटाने में संलग्न रहता है। उसका मन कभी निर्भय नहीं होता, वृत्तियाँ शान्त नहीं होतीं, संग्रह उसके सुख, संतोष और शांति को सुरसा बन लील जाता है,
जिसने परमाणु-शस्त्रों के निर्माण और फैलाव से विश्व को तनाव और संत्रास का वातावरण दिया, अनिश्चय और असमंजस की विकट स्थिति दी, उसने विश्व शांति का धरातल छीन लिया है। इन विनाशकारी स्थितियों में मानवीय सहृदयता, सहिष्णुता और सह-अस्तित्व की भावना को कैसे अक्षुण्ण रखा जा सकता है ? अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव कर तीसरी दुनिया को विकास के समुचित अवसर एवं साधन देने की संभावनाएं कैसे बलशाली बन सकती है ? मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति देना वर्तमान की बड़ी जरूरत है, क्योंकि वर्तमान युद्ध की जटिल से जटिलतर होती परिस्थितियों को देखें तो यह पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण एशिया और समग्र वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खतरनाक समय है। यदि अन्य देश भी इस संघर्ष में खेमेबाजी का शिकार होकर जुड़ते गए तो खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। भारत के लिए बेहतर यही होगा कि शांति एवं कूटनीतिक विकल्पों की वकालत करता रहे, लेकिन उसे खुद भी किसी भी प्रकार की स्थितियों के लिए तैयार रहना होगा।
दुनिया में पहले से ही काफी उथल- पुथल मची हुई है। अरब देश संघर्ष लंबा खिंचने पर क्या रूख अख्तियार करते हैं, देखना होगा। इजरायल के सामने भी एक बड़ी चुनौती है कि अगर उसने संघर्ष शुरू किया है तो वह ईरान के खतरे को हमेशा के लिए खत्म करे। ऐसे में इजरायल का सैन्य अभियान लंबा चल सकता है। इसके लिए ईरान की सत्ता में बदलाव या राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करना होगा। यहाँ अमेरिका का समर्थन अहम होगा। बेहतर होगा दुनिया को भारी नुकसान से बचाने के लिए पुतिन एवं ट्रम्प युद्ध की आग बुझाने की कोशिश करें। उनका आपस का दोस्ताना संवाद फिलहाल दुनिया के लिए अकेली उम्मीद की किरण है, हालांकि यूरोपीय संघ को और विशेषतः चीन कुछ हद तक यह अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन युद्ध के अंधेरों एवं शांति के उजालों के लिये यही एक रास्ता है।
अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है तो आगे चलकर इसमें अमेरिका, चीन और रूस जैसी बड़ी शक्ति शामिल हो सकती हैं। ईरान ऐसी जगह पर है, जहां से वह बहुत सीमित संसाधनों के साथ समुद्र से होने वाले वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकता है। इससे विश्व व्यापार ठप्प हो सकता है और तेल आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है।
इजरायल और ईरान के बीच सैन्य तनाव बढ़ने से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसके जटिल परिणाम सामने आते हैं और सभी जीवन-निर्वाह की चीजों के दाम बढ़ जाते हैं, जिससे भारतीय रूपया कमजोर होने, मुद्रास्फीति बढ़ने और देश की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ने का खतरा भी है। भारत अपनी जरूरतों का ८० प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, ऐसी घटनाओं का महंगाई से लेकर व्यापार संतुलन, रोजगार से लेकर जीवन-निर्वाह तक के महत्वपूर्ण संकेतकों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष भारत के हितों को चोट पहुंचाने वाला है। आर्थिक हित के साथ भारत को संतुलित रवैया अपनाना होगा, क्योंकि ईरान हमारा पुराना मित्र है, जो कश्मीर मुद्दे को लेकर इस्लामिक देशों के संगठन तक भारत का साथ देता रहा है। इजरायल हमारा महत्वपूर्ण सामरिक एवं नवाचार साझेदार है। किसी के भी पक्ष में झुकाव दुविधा को ओर बढ़ाएगा।