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उम्मीद

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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आज फिर सोमेश बाबूजी डाक घर के सामने उदास बैठे दिखे। डाक बाबू ने उन्हें अंदर बुलाया और कहा,-“बाबूजी,आप दो बरस से डाकघर बिना नागा किये आ रहे हैं। आखिर वो कौन- सी चिट्ठी है,जिसका आपको आने का इंतजार है ?आप रोज चार किलोमीटर पैदल चलकर डाकघर आते हैं और थककर लौट जाते हैं। मैं तो कहता हूँ कि आप इस उम्र में यहाँ तक मत आया करें। आपके नाम से कोई चिट्ठी आएगी तो हम लोग आपके घर जरूर पहुँचा देंगे। ए तो हमारा काम ही है।”
डाक बाबू की बात सुनकर बाबूजी की आँखों में जैसे दर्द के बादल उमड़ पड़े। उनकी आँखें छलकने लगीं। उन्होंने रुंधे गले से कहा-“हाँ डाक बाबू,अब तो तन-मन दोनों थक चुका है,पर उम्मीद अब भी बाकी है। मैंने अपना पूरा जीवन दोनों बेटों का करियर बनाने में निकाल दिया। छोटी-सी नौकरी में अपना पेट काट-काट कर उन्हें उच्च शिक्षा दिलवाई। जब उन्हें विदेश में नौकरी मिली तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। जैसे-तैसे अपनी पत्नी का जेवर-गहना बेचकर,मकान गिरवी रखकर मैंने अपने बेटों को विदेश भेजा। यही सोचकर कि आज ये छोटा-सा कर्ज है,कल मेरे कमाऊ बेटे आसानी से चुका देंगे।वे हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। उन्हें विदेश गये आज छः बरस हो गए। इस बीच उन्होंने कभी लौटकर नहीं देखा। शायद वहीं शादी करके बस गए हैं। उनकी चिट्ठी महीने-दो महीने में पहले आती रहती थी,पर वे कभी नहीं आये। उनकी बूढ़ी बीमार माँ की आँखें अपने बेटों के इंतजार में हमेशा के लिए मूंद गईं,फिर भी वे नहीं आये। सोचता हूँ माँ के मरने की सूचना मिलने पर वे आये,चाहे न आये पर कोई चिट्ठी तो जरूर भेजेंगे। यही सोचकर रोज यहां चक्कर लगाता हूँ,पर अब दो साल हो गए,अब तक उनकी कोई चिट्ठी नहीं आई। आज नहीं तो कल उन्हें अपने बूढ़े एकाकी जीवन जी रहे इस पिता की जरूर याद आएगी। वे एक दिन जरूर मुझे चिट्ठी लिखकर अपने पास बुलाएंगे। बस इसी उम्मीद में जी रहा हूँ।”
यह कहते हुए बाबूजी लाठी टेकते हुए जाने लगे। डाक बाबू स्तब्ध भाव से उन्हें जाते हुए देखते रहे।

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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