हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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रंग बरसे… (होली विशेष)…
इस आपाधापी के युग में मनुष्य आधुनिकता की ओढ़नी ओढ़ कर निकल जाता है। समय की बलिहारी है, कि आज किसी के पास समय नहीं है। भारत के बड़े- बड़े त्योहार व पर्व मनाने की हमारी परम्परा, आस्था व सनातन संस्कृति को सब इस आधुनिक युग ने खत्म कर दिया है। हमारे यहाँ हिन्दुओं के त्योहार पर हमेशा प्रतिबंध की छाया रहती है। दीपावली पर दिशा-निर्देश जारी हो जाते हैं। होली पर पानी बचाने, पेड़ व पर्यावरण के प्रति जागरूकता की बात होती है। हिन्दुओं को कहते हैं कि सिर्फ तिलक होली खेलें ? ऐसे नियम एक पक्ष पर ही क्यों लादे जाते हैं, यह समझ से परे है।
होली हर हिन्दुस्तानी के लिए सबसे बड़ा त्योहार है, जिससे मनुष्य उमंग, उल्लास व आनंद से भर जाता है। इन रंगों में प्रकृति का अटूट प्रेम है। होली जलाने पर अद्भुत ऊर्जा मिलती है, व लकड़ियों एवं गोबर के उपलों में जलता वह धुआं शुद्धता का अनुभव कराता है। रंगों में सौहार्द का अपनापन होता है, सद्भावना से भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। अगर ऐसा रंग बरसे तो क्या बुरा है! अच्छाइयों के होते बुराइयों का टिक पाना मुश्किल है।
हमारे बुजुर्ग व पुराने लोग बताते हैं कि पहले होली की मस्ती पूरे देश में उल्लास से मनाते थे। पानी, गुलाल रंग उड़ाया जाता था। घर- घर जाकर गुलाल का तिलक लगा कर पारम्परिक मिठाई, गुजिया व अन्य सेंव-नमकीन खाने का अलग आनंद होता था। परिवार एकजुट व संयुक्त परिवार की डोर में बंधे हुए रहते थे, पर ना जाने कब पुराने दिनों की होली गुम हो गई है।
वसंत के बाद फागुन माह आते ही त्योहार का उल्लास शुरू हो जाता है। कुछ लोगों ने इतने बड़े त्योहार को अपने अहम से घमंड व अहंकार से जोड़ दिया है। एक -दूसरे से प्यार-भाईचारे के रंग में रंगे हुए लोग दुश्मनी निकालने के लिए अब होली पर नकारात्मक रंग डालने लगे हैं। तभी तो धीरे-धीरे होली से लोगों ने दूरी बना ली है, क्योंकि खूनी होली खेलने वालों को यह सद्भावना सौहार्दपूर्ण वातावरण अच्छा नहीं लगता है। आराध्य देवता श्रीकृष्ण व राधारानी सरकार की फूलों के रंगों वाली होली, काशी में औघड़ दानी की शिव धाम की होली में शिव का रंग बरसे सदियों से इसी तरह से चला आ रहा है। महाकाल की होली, नाथद्वारा में होरियरों की मस्ती, मथुरा, वृंदावन, बरसाना की होली है तो पूरे बृज में कृष्ण कन्हैया कृपा बरसाते हैं। रंग-बिरंगे आसमान से पूरी धरती रंगों में नहा जाती है। होली पर फाग यात्रा से खुशबू के महकते भगवान के आँगन में लोगों का अपनापन वात्सल्य स्नेह भाव को अंगीकृत करता है।
पहले ४-५ दिन पूर्व ही होली जलाने के लिए गली-मोहल्लों, शहर-गाँव में तैयारी होने लगती थी। छोटे छोटे बच्चे इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। गाना-बजाना मस्ती करते बच्चे युवा वर्ग रात में परम्परागत होली जलाते थे तो दूसरे दिन धुलेंडी पर रंग-गुलाल से खेलते थे, पर अब तिलक होली और लकड़ी की जगह गोबर के उपलों की होली ने वैचारिक मंथन में बौद्धिक क्षमता की कमी कर दी है। डर, भय, नफ़रत और आपसी दुश्मनी के कारण भी होली का महत्व कमजोर हो गया है।
रंगों का अपना एक अलग महत्व है। यह रंग प्रेम का होता है। अपनों को जोड़ने के लिए रंग एक-दूसरे को लगाते हैं। दु:ख-सुख में रंगों की अपनी महिमा है।भारतीय पर्व के प्रति हम सभी की जवाबदेही है कि हम अपने त्योहार को एकजुटता के साथ मिलजुल कर मनाएं, तभी भाईचारे का रंग बरसेगा तथा पर्व-त्यौहार की सार्थकता भी बनी रहेगी।