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एक दीया

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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चारों ओर दीपावली के त्योहार की तैयारियाँ चल रही थी। बाजार में भी खूब चहल कदमी थी। घरों में साफ-सफाई और रंगाई-पुताई के काम समाप्ति पर थे। महिलाएँ घर की साज-सज्जा में और मिठाइयाँ, पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी।

आज कैलाश के दफ्तर से लौटने पर कुमुद बोली,-“पापा आप मुझे कुछ पैसे दे दीजिए। मैं भी अपने घर को खूब सजाऊंगी।”
पैसों की बात सुन कैलाश की आँखों के समक्ष दफ्तर का वाकया उमड़ आया, जहाँ दफ्तर के मालिक सभी कर्मचारियों को संबोधित करते हुए बोल रहे थे,-“इस बार कम्पनी को काफी नुकसान हुआ है। कम्पनी के पास सभी को वेतन दे पाना संभव नहीं है, तो दीपावली के बोनस की बात तो सोच भी नहीं सकते। मैं आप सभी से माफी चाहता हूँ कि, त्योहार पर आप सभी के हाथ खाली हैं।”
कुमुद बोली,-“पापा किस सोच में पड़ गए आप!, कुछ तो बोलो। आप मुझे पैसे दें, तो मैं ढेरों दीए और द्वार पर लगाने के लिए शुभ-लाभ ले आऊँ।”
कैलाश ने हौले से १० का एक नोट निकाला और कुमुद की ओर बढ़ा दिया।
१० का नोट देख कुमुद बोली, -“पापा मुझे ढेरों दीए लाने हैं इस १० के नोट से कुछ न होने वाला।”
विवश कैलाश ने अपनी स्थिति ज़ाहिर किए बिना कुमुद के सिर पर हौले से हाथ रखते हुए कहा,-“कुमुद, मेरी प्यारी बच्ची! तुम्हें तो पता है कि, दीवार पर शुभ-लाभ चिपकाने से ही कुछ शुभ नहीं होता। शुभ तो मन और विचार होने चाहिए और रही बात दीयों की, तो जब १ दीया जीवन को रोशन कर सकता है तो ढेरों की क्या जरूरत।”

कोमल मन पिता के हाथ से १० का नोट ले मुस्कुराते हुए दरवाजे की ओर चल दिया।

परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl