ललित गर्ग
दिल्ली
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भारतीय सिनेमा ने एक स्वर्णिम इतिहास रचते हुए पहली बार २ ऑस्कर जीत कर जश्न का अभूतपूर्व अवसर प्रदत्त किया है। आजादी के अमृत महोत्सव की अमृत बेला में ऑस्कर पुरस्कारों ने भारत सिनेमा में विशेष रूप से अमृतकाल को जन्म दिया है। अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के सबसे चमकदार भव्य मंच पर एकसाथ २ अलग-अलग भारतीय फिल्मों ने बाजी मार कर हर भारतीय को गौरवान्वित किया है। तेलुगु फिल्म ‘आरआरआर’ और वृत्तचित्र ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ ने अलग-अलग श्रेणियों में ऑस्कर पुरस्कार जीत लिए हैं। ९१ साल के ऑस्कर इतिहास में अब तक किसी भी भारतीय फिल्म को ऑस्कर नहीं मिल सका है। कुछ ऐसे भारतीय कलाकार भानु अथैया, सत्यजीत रे, ऐ. आर. रहमान एवं गुलजार जरूर रहे हैं, जिन्होंने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर अकादमी पुरस्कार प्राप्त कर देश को गौरवान्वित करने का मौका दिया है। फिल्म ’स्लमडॉग मिलियनेयर’ के बाद यह अवसर है जश्न मनाने का एवं भविष्य में और अधिक ऑस्कर पुरुस्कार जीतने के लिए कमर कसने एवं संकल्पित होने का।
‘आरआरआर’ फिल्म के गीत ‘नाटू-नाटू’ को मिली कामयाबी के पीछे छिपी अहमियत का अंदाजा इसे देखते-सुनते हुए हो जाता है। इसे देखते हुए आम दर्शक भी मंत्रमुग्ध हो जाता है। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय सिनेमा की दुनिया में जितनी फिल्में भी बनी हैं, उनमें से कई को देश-विदेश में अलग-अलग मानकों पर बेहतरीन रचना होने का गौरव मिला। जहां तक वैश्विक स्तर पर सिनेमा के सबसे ऊँचे माने जाने वाले आस्कर पुरस्कारों का सवाल है, बहुत कम भारतीय फिल्मों को उसमें कुछ महत्त्वपूर्ण हासिल करने का मौका मिला, लेकिन इस वर्ष के अकादमी पुरस्कारों यानी ऑस्कर में भारत को जो ऐतिहासिक उपलब्धि मिली है, वह निश्चित रूप से भारतीय सिनेमा प्रेमियों के लिए खुश होने वाली बात है। दूसरी बड़ी कामयाबी के तहत ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ को देखना विलक्षण एवं अद्भुत अनुभव है, लेकिन इसकी सफलता तब मानी जाएगी जब भारतीय वन्य जीवों के प्रति लगाव एवं संवेदना जगाने वाले और भी कुछ अनूठे काम सामने आएं। वन्य जीवों के प्रति उपेक्षा एवं स्वार्थी-लोभी, खतरनाक इंसानों के हाथों उनकी जान जाने की घटनाएं पर्यावरण एवं सृष्टि असंतुलन का बड़ा कारण है। ऑस्कर के बहाने ही सही यदि हम वन्य जीवों के प्रति जागरूक होते हैं तो यह इस बड़े पुरुस्कार मिलने की सार्थकता होगी।
सच यह है कि आस्कर २०२३ में भारत ने बेहतरीन सिनेमा के मामले में अपने स्तर पर एक अहम इतिहास दर्ज किया है। फिर भी यह अपने-आपमें एक सवाल है कि, हर साल भारत में संख्या के लिहाज से करीब डेढ़ हजार फिल्में बनने के बावजूद उनमें से गिनती की कुछ फिल्मों को ही स्थायी महत्व और वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हासिल कर पाने वाली कृतियों के रूप में दर्ज किया जाता है। हो सकता है कि, ऑस्कर में भारत के हिस्से कम उपलब्धियां आई हों, लेकिन दुनियाभर में इन पुरस्कारों को जिस स्तर का माना जाता है, उसमें कुछ हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती होती है। अब इस बार की कामयाबी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए वैश्विक स्तर पर टक्कर देने वाली कुछ बेहतरीन फिल्में भी बनेंगी।
सिनेमा जगत का सबसे बड़ा अवार्ड ऑस्कर जो दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है। सिनेमा से जुड़े लगभग सभी कलाकार इसको जीतने की चाहते रखते हैं। दुनिया में वैसे तो सिनेमा के क्षेत्र में सैकड़ों पुरस्कार दिए जाते हैं। इस पुरस्कार से भारतीय फिल्म उद्योग को दुनियाभर में नई पहचान मिली है, दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सवाल मुंबई फिल्म उद्योग और दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के बीच अंतर करने का नहीं है। सवाल भारतीय सिनेमा को सार्थक बनाने का है। विश्व-सिनेमा अब भारतीय दर्शक के जीवन का एक कोना है। यही कारण है कि अब सार्थक सिनेमा की दृष्टि से भारत में प्रगति हो रही है।
भारतीय सिनेमा को ऑस्कर में लगातार खनक पैदा करने एवं अपनी उपस्थिति का अहसास कराने के लिए विश्व-सिनेमा के अनुरूप फिल्मों का निर्माण करना होगा, जो एक बिल्कुल अलग परिघटना है। इस सिनेमा में विषयों का अपार विस्तार है, भावों की विस्मित करती दुनिया है, इंसानी संबंधों के गहनतम आख्यान है। इनमें देश हैं, समाज हैं, संस्कृतियों और इतिहास है। यह बड़ा ही विराट लोक है। विश्व इतिहास के चरित्रों और घटनाओं पर बनी-रची महत गाथाएं हैं, तो समकालीन इतिहास को टटोलती नाजी कैंपों, और विश्वयद्धों की अनगिनत घटनाएं हैं। विश्व साहित्य की शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण कृति हो, जिस पर बेहतरीन फिल्म न बनी हो।
अफसोस यह है कि, हमारी खोज एवं उपक्रम आर्थिक और उपभोगगत दायरे में सिमटे हैं। हालांकि, इसी आर्थिक राह से चलती संस्कृति भी अपने पंख फैलाती सारे विश्व में विचरण कर रही है, पर विश्व साहित्य, किसी पराए संसार के प्रतिनिधि हैं, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। विश्व सिनेमा पर रचे गए पात्र समूची मानवता के दुख-सुख के प्रतिनिधि हैं। वे मनुष्य की सामूहिक पीड़ा और सामूहिक स्वप्नों से मिलकर बने हैं। ऑस्कर का विश्व-सिनेमा, मानव-हृदय का विशाल दर्पण है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा। हजारों अविस्मरणीय किरदार और जिंदगी की असंख्य सच्चाइयों को खोलती हजारों कहानियां हमारे अपने मन और जीवन के आयाम बनने के रास्ते में खड़ी हैं। विश्व-सिनेमा के विशाल सागर में ऑस्कर से सम्मानित होने का अवसर सिर्फ एक लहर है, एक छोटी-सी झलक मात्र जो यह संदेश देना चाहती है कि जिंदगी उतनी ही नहीं हैं, जितनी हमने जी या देखी-जानी है। भारतीय सिनेमा अपना कार्यक्रम बदले एवं भारत की खिड़की से विश्व को देखने एवं विश्व को भारत दिखाने की पहल करें तो यही ऑस्कर की सीढ़ियाँ बन जाएगा।