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कभी खुशी,कभी ग़म

राधा गोयल
नई दिल्ली
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तारों की बारात साथ ले,निकला चाँद विवाह करने,
अम्बर में बज उठे नगाड़े,लोग खुशी से झूम उठे।
वो रात पूर्णिमा की थी,उस दिन पूर्ण चन्द्रमा प्रकट हुआ,
रजनी राका का मिलन हुआ,सम्मोहित सारा जगत हुआ।

लाखों तारे उसकी चुनर में,जगमग-जगमग चमक रहे,
विभा निराली थी उसकी,सब लोग खुशी में बमक रहे।
ऐसा लगता था आसमान धरती पर स्वयं उतर आया,
पूनम की विभा दिखाने को सबको मोहित करने आया।

इक संदेशा भी दिया कि ऐसा समां सदा नहीं रहता है,
यदि आज रात उजियाली है,कल अंधियारा हो सकता है।
मैं पन्द्रह दिन बढ़ता रहता,पन्द्रह दिन होता जाता कम,
बढ़ने पर पूनम से मिलता,घटने पर दुखी न होता मन।

ये शाश्वत क्रम है जीवन का,कभी खुशी कभी आता है ग़म,
कभी रात पूर्णिमा की आती,कभी छाए अमावस्या का तम।
ये सत्य सनातन है तो फिर,तम से घबराकर क्या होगा ?
कर्तव्य मार्ग पर चलता रह,जो भी होगा अच्छा होगा॥

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