पटना (बिहार)।
संस्थाएं बुरी नहीं होती, कुछ ऐसे बुरे लोग होते हैं, जो साहित्य की दुनिया से कटकर अपनी एक मानसिकता और एक विचार के लोगों में सिमटकर अपने घेरे के भीतर झाँकते रहते हैं, और अपने कुएं को ही दुनिया समझ लेते हैं। प्रेमचंद को लोग उनकी कहानियों के कारण जानते हैं या जनवादी मंच के सदस्य होने के कारण ? महावीर प्रसाद द्विवेदी, गोपाल दास ‘नीरज’ जैसे रचनाकार किस खेमे में सिमट कर रह गए थे ? मैं तो उन्हीं के बताए गए रास्ते पर चलना चाहता हूँ। अपनी कमजोर रचनाओं की बदौलत किसी खास खेमे द्वारा प्रतिष्ठा नहीं पाना चाहता।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने आभासी आयोजन ‘तेरे-मेरे दिल की बात’ के अंक २४ में उपरोक्त बात कही। ‘घेरे के साहित्यकार और गुटबंदी’ के संदर्भ में उन्होंने कहा कि, प्रतिष्ठित कथा लेखिका उषा किरण खान को अपनी पहचान बनाने के लिए ऐसी किसी भी खेमे की वैशाखी की जरूरत नहीं पड़ी। ऐसे ही सवाल पर उषा किरण खान ने स्पष्ट कहा कि, खेमेबाजी और गुटबंदी के घेरे में रहने वाले साहित्यकार अपने-आपको ही छल रहे होते हैं। साहित्य के इतिहास में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता और न ही उनकी रचनाएं समाज में कोई बदलाव लाने की दिशा में सकारात्मक पहल कर पाती है। स्त्री विमर्श, नारी विमर्श, नारी सशक्तिकरण आदि नाम देकर रचना लिखने वाले अपनी सृजनशीलता पर विश्वास नहीं रखते।
सिद्धेश्वर के विचार पर अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ ने कहा कि, अगर हौंसलों में उड़ान है, तो दुनिया को दिखा देंगे। बिना खेमे के भी आकाश में परचम लहरा देंगे। सच में आज साहित्य के नाम पर हर जगह गुटबाजी और गुटबंदी देखने को मिल रही है।
इंदु उपाध्याय ने कहा कि, क्या साहित्यकार किसी भी प्रकार के दायरे में बंधकर साहित्य की सेवा कर सकता है..? वाचिक और लिखित शास्त्र समूह ही साहित्य है, जिसमें केवल भाव समाहित हो। खेमे सृजनशीलता के पंख को कुतरने लगे हैं, या यूँ कहें कि कुतरने का खेल आरंभ हो गया है।
सपना चंद्रा ने कहा कि, साहित्य किसी की निजी जागीर नहीं होती है। साहित्य स्वार्थ और लालच से बिल्कुल परे होना चाहिए। नवांकुरों के लिए वरिष्ठ साहित्यकार मार्गदर्शक की भूमिका में रहें, परंतु आज यह उल्टा ही है। सिद्धेश्वर जी की कोशिश रहती है कि, जो योग्य हैं उन्हें उचित सम्मान मिलना ही चाहिए।
परिषद् की उपाध्यक्ष राज प्रिया रानी ने बताया कि माधवी जैन, रजनी श्रीवास्तव, पुष्प रंजन और सुधा पांडे आदि ने भी विचार व्यक्त किए।