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बन जाऊँ इंसान

ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)

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ईश्वर और मेरी आस्था स्पर्धा विशेष…..

प्रभो,सुन ले मेरी पुकार,आज,आई तेरे द्वार।
नैया फंसी हुई मझधार,कर दे सबका बेड़ा पार॥

स्वार्थ-कपट की चादरओढ़ी,खुद पर किया गुमान,
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख बना,पर बना नहीं इंसान।
काम ना आया कभी किसी के,मैं पापी नादान,
लूट-लूट कर भरा खजाना,बेचा रोज ईमान।
आदत से लाचार रहा मैं,तेरा किया नहीं आभार,
नैया फंसी हुई मझधार,कर दे सबका बेड़ा पार…॥

माँ कहकर धरती को लूटा,कब माना अहसान,
भूल गया गैया का खूंटा,उसे समझा बेज़ुबान।
पेड़ों की कीमत कब जानी,करता रहा अपमान,
पशु-पक्षी की कद्र ना जानी,मैं उद्भट विद्वान।
ओ सुनले रे दातार मेरे,मैं तुझसे करूँ गुहार,
नैया फंसी हुई मझधार,कर दे सबका बेड़ा पार…॥

त्राहि-त्राहि मची जगत् में,लाचार खड़ा विज्ञान,
प्राण पड़े संकट में मेरे,तू याद आया भगवान।
तेरे दर से कोई गया ना खाली,सब करते गुणगान,
क्यों करूं हैरान किसी को,बन जाऊँ इंसान।
करुणानिधि करना न इंकार,तेरी महिमा अपरम्पार,
नैया फंसी हुई मझधार,कर दे सबका बेड़ा पार…॥

प्रभो,सुन ले मेरी पुकार,आज,आई तेरे द्वार,
नैया फंसी हुई मझधार,कर दे सबका बेड़ा पार…॥

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