डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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मैं कलम हूँ सतरंगी पट, इन्द्रधनुष बन खिल जाती हूँ,
अन्तर्मन के ऊहापोह को, धवल पत्र पर मुस्काती हूँ।
दर्पण अतीत में वर्तमान गढ़ जाती हूँ नव पथ भविष्य-
कालचक्र संवेद हृदयतल सुख-दु:ख गाथा लिख जाती हूँ॥
गहन घटा श्यामल दवात मसि, इंतज़ार कलमें करती हूँ,
मानव मन के निहित भाव को कलमों द्वारा सहलाती हूँ।
नीलगगन सम मसि संरक्षक बन जाती हूँ अरुणाभ रक्त-
हरित श्याम बहुरंग स्याहियाँ दवात पात्र सबको भाती हूँ॥
जज़्बातों को शब्द अर्थ बीच कलमकार कलमें गाती हैं,
सामाजिक जीवन्त कला मैं पद सत्ता तक ले जाती हूँ।
क्रान्तिदूत अतुलित शक्ति जयगाथा गाती हूँ जय शहीद-
चारु प्रकृति आहत जन चाहत शंखनाद भी कर जाती हूँ॥
अन्तर्नादित दावानल रव दहन ज्वाल बन दहलाती हूँ,
धर्म अधर्म मंझधार समर कर्मयोग पथ ले जाती हूँ।
दवात में संचित स्याही से ढांढस देती हूँ क्लेशित-
शान्ति दूत बन मानवता सच न्याय नीति पथ दिखलाती हूँ॥
राष्ट्र धर्म सेवा अर्पित मन इन्सानी राहों जाती हूँ,
गीत नृत्य संगीत रीति रस मनमीत प्रीति मन रच जाती हूँ।
जज़्बातों के भाव समेटे रोशनी दे जाती सर दिली दर्द-
मुझे कलम तलवार समझ लो, दवात मसि से इठलाती हूँ॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥