कुल पृष्ठ दर्शन : 338

You are currently viewing कलयुग का कपड़ा…बर्तन!!

कलयुग का कपड़ा…बर्तन!!

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
*******************************************

जब से हमारे देश में मॉल संस्कृति आई है,तब से देख रहा हूँ कि घर में कपड़ों का ढेरी लगा रहता है। हर तरफ कपड़े ही कपड़े दिखाई पड़ते हैं,यहाँ तक कि कुर्सी और मेज़ पर भी कपड़े रखे रहते हैं। कितनी बार घर वालों को समझाया कि भाई कपड़ों को जरा ढंग से सहेजकर अलमारी में रखा करो, लेकिन इस घर में मेरी कोई सुनता ही नहीं…।
घर के सोफे में कुछ कपड़े पड़े हुए थे,मैंने सोचा कि शायद धोने के लिए हैं,इसलिए मेरा नया शर्ट-पैंट(जिसे मैंने केवल कुछ दिन ही पहना था) उन कपड़ों की ढेरी के ऊपर डाल दिया।
बचपन से हम लोग सीमित कपड़ों से ही काम चला लेते थे,काफी दिन ठीक-ठाक चला,पर बच्चे जब बड़े हो गए और मॉल संस्कृति मेरे घर में प्रवेश कर गई,तब से मेरी जैसे शामत ही आ गई…। बच्चे जब भी मॉल जाते,कुछ न कुछ कपड़े जरूर खरीद लाते, जिनकी मेरी नज़र में कोई भी जरूरत नहीं होती है। मेरे टोकने पर बच्चे मुझसे बोलते हैं, आप नहीं समझेंगे पिताजी,आजकल स्टाइल बहुत तेज़ी से बदलता रहती है,इसीलिए हमें नए स्टाइल के कपड़े पहनने पड़ते हैं,नहीं तो कॉलेज में हमें लोग गंवार समझेंगे। जैसे,वे कॉलेज में पढ़ने नहीं,स्टाइल करने जाते हैं।
मेरी पत्नी भी बच्चों का साथ देती थी। बोलती कि आपने कभी जिंदगी में मेरे लिए कुछ लेकर नहीं दिया,अब जब बच्चे नए कपड़े लेकर आते हैं तो किसलिए हल्ला करते हैं जी। मेरा दिमाग घूम जाता है…जब मेरी पत्नी मुझसे इस प्रकार बात करती है। शादी के बाद मैंने उसे हर अवसर पर नए-नए कपड़े खरीदकर दिए और अब मुझ पर यह लांछन लगा रही है कि मैंने उसे कुछ भी नहीं दिया। हे.. भगवान…समझ में नहीं आता है कि कहाँ जाऊँ मैं,और जाने कब ये लोग खुश होंगे…।
मैंने अपने घर के दरवाजे पर सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरा लगा दिया था,ताकि किसी भी वक्त कोई भी बाहर से आए तो पत्नी और बच्चों को घर के भीतर से दिखाई पड़ जाए। वे इस सुविधा का ऐसा फायदा उठाएंगे,मुझे एक दिन पता चला। हुआ यूँ कि एक बार छुट्टी के दिन दोपहर के समय मैं घर में सुस्ता रहा था। इतने में किसी ने काल बेल बजाई। मैंने देखा टीवी मॉनिटर में कि,कौन आया…? देखने के बाद बच्चे और पत्नी युद्धस्तर पर सक्रिय होकर सोफे के ऊपर से सभी कपड़े उठाकर अलमारी में ठूँस-ठूँसकर भर दिए। …और हैरानी कि बात यह कि उनकी यह कार्यवाही महज कुछ सेकंड में हो गई और उसके बाद दरवाजा खोला गया। मैंने देखा कि मेरा मित्र मुझसे कुछ जरूरी बातें करने के लिए आया था। अब बैठक को देखकर कोई भी नहीं बोल सकता था कि कुछ देर पहले यह कमरा कपड़ों का कबाड़खाना लग रहा था।
३ दिन बाद जब मैंने अपने नए शर्ट-पैंट (जो सोफे पर बाकी कपड़ों के साथ रखी थी, धुल कर-ईस्त्री हो कर आया कि नहीं) के विषय पर पत्नी से पूछा,तो वह बोली,-‘हाय राम..!! वो तो मैंने बर्तनवाले को देकर कपड़े के बदले में बर्तन ले लिए हैं। वह तो बहुत सारे कपड़े के बदले में कुछ ही बर्तन देता है पर इस बार उसने कुछ बोला नहीं। चुप-चाप कपड़े के बदले मुझे जो-जो बर्तन चाहिए थे, दे दिए। मेरा दिमाग ख़राब हो गया। मुझे पत्नी पर क्रोध तो आ रहा था,पर मैं विवश था। वह बोली,चलो कोई बात नहीं। वैसे भी, वह शर्ट-पैंट आपके सही नाप का नहीं था। अच्छा हुआ कि वह चला गया,मैं आपके लिए बेटे से नया शर्ट-पैंट खरीदकर लाने को बोल दूँगी।
मेरे मुँह से अनायस निकाल गया कि पिछली बार वह मेरे लिए मॉल से एक कपड़ा लेने गया था,पर अपने लिए ३ कपड़े ले आया। पूछने पर बताया कि ३ कपड़े खरीदने पर १ कपड़ा मुफ़्त मिल रहा था,इसीलिए मैंने अपने लिए ३ कपड़े ले लिए तो आपका कपड़ा मुफ़्त में मिल गया। आपको मेरे दिमाग की तारीफ करनी चाहिए,पर आप हैं कि नाराज हो रहे हैं। मैंने कहा,-बस रहने भी दीजिए,खुद ही जाकर ले आऊँगा। पत्नी मेरी बात सुनकर खुश हो गई,बोली-ठीक है कब चलना है बोलिए! मैं भी आपके साथ चलूँगी। मैंने पूछा,-क्यों आप भी खुद के लिए शर्ट-पैंट खरीदेंगी क्या? वह शर्मा गई,बोली- आप भी न बड़े मजाकिया हैं,इस उम्र में शर्ट-पैंट पहनूंगी तो लोग मुझे भला क्या कहेंगे। मुझे तो मॉल से कुछ बर्तन लेना है।
मेरे घर में कपड़ों की तरह बर्तन की भी कोई कमी नहीं है,पर मेरी पत्नी जब भी बाज़ार या मॉल जाती है कुछ न कुछ बर्तन खरीदकर ही मानती है। धनतेरस पर भी ढेर बर्तन खरीद लाती है। उनको कौन-सा बर्तन किस काम के लिए चाहिए,बखूबी याद रहता है और बात मनवाकर ही मानती है।
रोज-रोज कपड़ों को कुर्सी पर पड़ा देख कर मैं ४-५ प्लास्टिक की कुर्सियां खरीद कर ले आया। घर मैं सभी बोले,हमें तो इन कुर्सियों की कोई जरूरत नहीं है आप इन्हें क्यों लाए हैं ? मैं बोला,मैं अवलोकन किया कि आप लोगों के अलमारी में कपड़ों की जगह तो रहती है,पर आप लोग मेरे बार-बार मना करने के बाद भी कुर्सी पर कपड़ा रखना पसंद करतें हैं,और ऐसी आदत भी बन चुकी है। अब आप लोग बैठक के सोफ़े के ऊपर भी कपड़े रखने लगे हैं,जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। इसलिए आप लोगों के कपड़े रखने के लिए कुछ कुर्सियां खरीद लाया हूँ। आप लोग अपने हिसाब से कुर्सी ले लीजिए, फिर अपने कमरे मे ले जाकर इस पर कपड़े रखा कीजिएगा। परिवार के सभी लोग मेरा मुँह देखते रह गए और मैं अपने कमरे में चला आया…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

Leave a Reply