प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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‘आदि’ और ‘नील’ २ भाई थे। दोनों एक ही कॉलेज में एक ही कक्षा में पढ़ते थे। आदि पढ़ने में होनहार होने के साथ- साथ समय का एकदम पाबंद था, जो भी कार्य करता; समय पर करता। सभी शिक्षक उसकी तारीफ़ करते न थकते।वहीं नील पढ़ने में कम होने के साथ- साथ बड़ा ही आलसी था। कोई भी काम समय पर न करता, हमेशा सबसे पीछे रहता। जब कोई उसकी तुलना आदि से करता, तो नील को जरा भी अच्छा न लगता।
देखते-देखते समय बीतता गया। परीक्षा के दिन नज़दीक आ रहे थे। आदि अपनी पढ़ाई रोज़ के रोज़ करता और क्लॉस में जो भी पढ़ाया जाता, वह उसी दिन घर आकर उसे अच्छे से समझ लेता और नील को भी समझाता, लेकिन नील यह कहकर टाल देता कि अभी परीक्षा को बहुत दिन बाक़ी है, और मोबाइल में गेम खेलने लगता। नील हमेशा परीक्षा नज़दीक आने के एक सप्ताह पहले पढ़ाई करने में जुट जाता, लेकिन उससे कुछ नहीं हो पाता। उसके सभी पेपर अच्छे नहीं होते। उसे कुछ भी याद ही नहीं आता। जो भी याद करता था, भूल जाता और ऐसे सभी परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता। उसके माता-पिता सभी उसे बहुत समझाते कि, बेटा समय रहते पढ़ा करो लेकिन वो किसी की नहीं सुनता, अपने मन की ही करता।
जैसे-तैसे करके वह ग्यारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर लेता है। अब दोनों भाई बारहवीं कक्षा में पहुँच गए। अभी भी नील का हाल कुछ वैसा ही था। सब काम कल पर डाल देता, कुछ भी काम समय पर नहीं करता। वही समय बर्बाद करना, दोस्तों के साथ समय पास करना, गेम खेलना आदि। देखते-देखते बोर्ड की परीक्षा नज़दीक आ जाती है। हमेशा की तरह नील की कुछ भी पढ़ाई नहीं हुई रहती और उसके सभी पेपर अच्छे नहीं जाते हैं। अब नील घबराने लगा। उसे अपनी करनी पर बड़ा पश्चाताप होने लगा। कहने लगा, काश! मैं भैया की तरह समय रहते पढ़ लेता तो मेरे पेपर भी अच्छे जाते। उसे अंदाज़ा हो गया था कि, वह उत्तीर्ण नहीं हो पाएगा और वही होता है। नील बारहवीं में अनुत्तीर्ण हो जाता है और बहुत फूट-फूट कर माता-पिता के सामने रोता है। अपनी गलती पर अब उसे बड़ा पछतावा होता है।
सीख-कोई भी कार्य हमें कल पर नहीं डालना चाहिए। अपने समय पर किया हुआ कार्य सफलता के द्वार खोल देता है।