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कांग्रेसःप्रा.लि.कं. से राजनीतिक दल बनना होगा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कांग्रेस के अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कई अन्य युवा नेताओं के इस्तीफों की झड़ी लग गई है,लेकिन कांग्रेस के खुर्राट बुजुर्ग नेताओं में से किसी ने भी इस्तीफा नहीं दिया है,क्योंकि चुनाव-प्रचार के दौरान उनका कोई महत्व ही नहीं था। कांग्रेस का मतलब सिर्फ राहुल गांधी था,जैसे भाजपा का मतलब था,सिर्फ नरेंद्र मोदी। २०१९ का चुनाव वास्तव में न तो किसी विचारधारा पर लड़ा गया और न ही किसी नारे पर। यह चुनाव तो अमेरिकी चुनाव की तरह अध्यक्षात्मक चुनाव था। भाजपा फिर भी भाई-भाई पार्टी थी। अमित शाह और नरेंद्र मोदी,नरेंद्र भाई और अमित भाई,लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस तो माँ-बेटा पार्टी भी नहीं रही। सिर्फ बेटा पार्टी बनकर रह गई। बेटे ने यूँ तो कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़ी मेहनत की,बहुत घूमा। बहुत बोला,नहीं बोलने लायक भी बोला। अपनी पप्पू पने की छवि को भी सुधारा,लेकिन चुनाव-परिणाम ने दिल तोड़ दिया। अब इस्तीफा दे दिया तो कांग्रेस पार्टी के होश गुम हैं। अभी तक वह नया अध्यक्ष नहीं ढूंढ पाई। कोई भी इस प्रायवेट लिमिटेड कम्पनी का अध्यक्ष बनकर करेगा क्या ? उसे माँ-बेटे का रबर का ठप्पा ही बनना पड़ेगा। क्या अध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता मिलकर करेंगे ? क्या प्रदेशों की कार्यकारिणी समितियां करेगी ? क्या केन्द्रीय कार्यसमिति में चुनाव द्वारा अध्यक्ष बनाया जाएगा ? सबसे पहले कांग्रेस को प्रायवेट लिमिटेड कम्पनी से बदलकर एक राजनीतिक का रुप दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के फैलाए हुए जहर को भाजपा ने भी निगल लिया है। उसका स्वरुप भी प्राइवेट लिं. कं. की तरह होता चला जा रहा है। हमारी प्रांतीय पार्टियां तो पहले से ही प्रायवेट कम्पनी ही नहीं,निजी दुकानें भी बनी हुई हैं। हमारी सभी पार्टियां नोट और वोट के झाँझ कूटने में लगी हुई हैं। सबने अपना-अपना जातिय और सांप्रदायिक जनाधार बना रखा है। कांग्रेस के लिए यह अमूल्य अवसर है कि वह इस समय देश को लोकतंत्र के मार्ग पर चला दे। अभी वह चाहे हारी हुई उदास और छोटी पार्टी ही है,लेकिन वह अपने अध्यक्ष का चुनाव लाखों सदस्यों के मत से करे तो वह अध्यक्ष इस प्रा. लि. कं. को सचमुच राजनीतिक दल में बदल सकता है। वह प्रचंड जन-आंदोलन छेड़ सकता है। सरकार को वह सही रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सकता है। आज देश के हर जिले,हर शहर और हर गांव में कांग्रेस का कोई न कोई नामलेवा मौजूद है। उसके पास कई अनुभवी नेता भी हैं। यदि कांग्रेस में अब भी बुनियादी सुधार नहीं हुआ तो वह भी ब्रिटेन की टोरी और व्हिग पार्टी की तरह इतिहास का विषय बन जाएगी। भारत के लोकतंत्र का यह दुर्भाग्य ही होगा।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।