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कैसे सहूॅं माँ गम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कैसे सहूॅं माँ गम परलोक गमन बिन छांव तले,
आज हुआ अकेला खो माँ ममतांचल कर्मपथी
माँ हृदय सदैव त्रिमूर्ति का अनुभव लघु जीवन,
माँ हीरा बेन जना कोख देश महानायक थी।

कैसे सहूॅं माँ पीड़ा गम तेरे परलोक गमन माँ,
जीवन,त्याग,संकल्प,शुचिता माँ तुम प्रतीक थी
शानदार शतायु जीवन का हुआ शानदार अंत,
ममतामयी आँचल भारत नरेंद्र सपूत गढ़ी थी।

काम करो नित मति शुद्धि जिओ कर्मपथ,
दिग्दर्शक सन्तति जीवन में माँ हीरा बा थी
सदानन्द सपूतों की महाशिक्षिका थी हीरा माँ,
ममता से भरने वाली माँ अब नहीं रही थी।

नरेन्द्र को गढ़ने रचने वाली त्याग मूर्ति माँ,
संस्कार व सदाचार सिखाती हीरा माँ थी
छोड़ गई दुनिया हीरा पंचतत्व पथगामी यश,
वात्सल्य स्नेह सिंचित वतन नेतृत्व जनी थी।

सात्विकता का आदर्श मूर्ति हीरा बा माँ अविरत,
कर्मयोग ममता संवेदित भारत आदर्श रूप थी
महाप्रयाण धरा से हीरा माँ परमार्थ पथिक बन,
स्नेहाशीष गढ़ी अद्भुत सन्तति चरित्र हीरा थी।

कीमती हीरा भारत तनया कोख धन्य हीरा माँ,
जीवन प्रेरणा जियो शुद्धि सुपथ हीरा बा थी
सात्त्विक जीवन मानवीय मूल्य धरोहर हीरा बा,
स्वीकारो अंतिम प्रणाम हीरा माँ भारत माँ थी।

शानदार कथानक कर्मयोगी हीरा माँ जीवन,
सादगी सदाचार संघर्षपूर्ण त्यागी प्रतीक थी
आखिरी सफ़र दुर्लभ मानव जीवन शतायु वयस,
सौभाग्यशालिनी हीरा माँ मुदिता भारत माँ थी।

भक्ति तपस्या पौरुष संकल्पित प्रेमपथिक नित,
माँ जीवन की प्रथम मीत गीत संगीत नरेन्द्र थी
शानदार शताब्दी दुख सुख बहती जलधारा नद,
परमलोक अधिकारी रत्नगर्भा माँ बा हीरा थी।

ईश्वर के चरण कमलों में अमर हीरा मातु विलय,
निभाने कर्म वतन कर नमन मातु मुखाग्नि दी थी।
दी कंधा माँ अंतिम सफ़र साश्रु नयन भावुक मन,
बढ़ कर्मयोग पथ कर्मपथी नरेन्द्र माँ हीरा बा थी।

अलविदा लोक हीरा बा गमन गोलोक मुदित है,
धन्य धन्य भारत धरती जिसने हीरा मातु जनी थी
धन्य मातु गौरव भारत जो सपूत नरेन्द्र रची वह,
आलोड़ित करुणामय हियतल माँ ममतांचल थी।

सदय सरल सौहार्द्र प्रकृति परार्थ निकेतन हीरा थी,
निर्माणक सत्प्रेरक जीवन सपूत नरेंद्र माँ हीरा थी।
मुक्तिधाम से मुक्ति लोक पथ स्थितप्रज्ञ माँ हीरा थी,
महाजननी को विनत साश्रु शत नमन श्रद्धांजलि है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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