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‘कोरोना’ के फायदे

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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दुनिया में एक से बढ़कर एक लोग हैं जो अवसर को सबसे पहले पहचान जाते हैं,और उसका भरपूर फायदा उठा लेते हैं। जब ‘कोरोना’ काल शुरू हुआ और इसके निदान के लिए समय-समय सरकारी आदेश आने लगा,जिसमें कहा गया कि ‘कोरोना होने की  प्रयोगशाला की रिपोर्ट ऑफिस में जमा करने पर कर्मचारी को १५ दिन तक विशेष अवकाश प्राप्त होगा।’
          रामू मेरे ऑफिस का कर्मचारी है,एक दिन दफ्तर के कमरे में आया और बोला कि ‘महोदय,मेरे सारे शरीर में बहुत दर्द हो रहा है तथा मुझे सर्दी और गले में ख़राश जैसे लग रहा है,मुझे बुखार आने के पहले जैसी अनुभव हो रहा है।’
इतना बस बोला भर था कि,कमरे में और भी एक-दो कर्मचारी थे,वे रामू को लगभग धक्का मारते हुए कमरे से निकालते हुए बोलने लगे,’तुझे कोरोना हुआ है तू जल्दी से अपना टेस्ट करवाकर,डॉक्टर को दिखाकर दवाई ले ले।’
लोग कोरोना से इस कदर आतंकित थे कि, मुझे कुछ पूछने या बोलने का अवसर नहीं मिला। दूसरे दिन रामू ने घर से फोन किया कि,’महोदय मुझे कोरोना हो गया है,जिसकी रिपोर्ट आपको अभी व्हाट्सएप से भेज रहा हूँ,और नहीं तो मैं स्वयं ही ऑफिस में आकर जमा कर देता हूँ।’ कोरोना का डर हम लोगों पर इस कदर छाया हुआ था हम बोल उठे, ‘अरे नहीं-नहीं,घर से बाहर मत निकलो और आपकी भेजी गई व्हाट्सएप रिपोर्ट से ही काम चल जाएगा। आप अपनी विधिवत चिकित्सा कराएं और पंद्रह दिन बाद कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट मिलने पर ऑफिस आएँ।’ मेरे साथ ऑफिस के दूसरे कर्मचारी भी सहमत हुए।
          हम लोगों का भय रोज़-रोज़ अख़बार और टी.वी. पर समाचार देखकर बढ़ता ही जा रहा था। टी.वी. तथा यू-ट्यूब देखकर मेरे घर में भी तरह-तरह का काढ़ा बनाया जाने लगा था। काढ़ा इतना बेस्वाद होता था कि  कोरोना भी उससे दूर रहने लगा और उसे पीने वालों को कोरोना नहीं होता था। इंटरनेट से कोरोना मुक्त खाना बनाने की विधि से घर  पर तरह-तरह का खाना बनाया जाने लगा जो बेहद ही बेस्वाद होता था,पर इस विषय में कुछ बोलने के लिए मुँह खोलते ही पत्नी द्वारा लंबा सा भाषण सुनने को मिलता था। रोज-रोज साग-भाजी खा-खा कर मुँह में कोई स्वाद नहीं रह गया था,यह बात पत्नी को बताने में डर रहा था,क्योंकि मुझे उसके द्वारा बनाए गए खाने में कोई स्वाद नहीं आ रहा कहना भारी पड़ सकता था,यह बात मैंने अपने पड़ोस में देख ली थी। जब पति ने पत्नी से खाने में कोई स्वाद नहीं मिलना बताया तो तुरंत पत्नी ने यह जानकारी अस्पताल को फोन द्वारा दी,-अस्पताल से तुरंत एम्बुलेंस आकर पड़ोसी को उठाकर ले गई। वो अब अस्पताल का और भी बेस्वाद खाना खा रहा है…।  
          अब दफ्तर में केवल ५० प्रतिशत कर्मचारियों को बारी-बारी से आने को बोल दिया गया,और लोग अपनी समय-सारणी के अनुसार समय से डरते-डरते आने लगे थे। कार्यालय में बहुत अच्छे तरीके से दवाई का छिड़काव हुआ,हर-एक टेबल तथा कुर्सी साफ की गई। अब दफ्तर के आवक-जावक शाखा के काम में भी बदलाव देखने को मिला,हर हार्ड कॉपी फ़ाइल को अच्छे से दवा छिड़ककर स्वच्छ (सैनिटाइज़) किया जाता था,और उस शाखा के कर्मचारी दस्ताने का प्रयोग करने लगे। थोड़ी देर के अंतराल में अपना हाथ साबुन से धोने लगे। बाकी का सारा काम ई-ऑफिस से होने लगा। बैठकें अब वीडियो-कॉन्फ्रेंस से होने लगी। लोग दूर से ही एक-दूसरे को नमस्कार करने लगे थे लेकिन हाथ मिलाने का अभ्यास अब तक छूटा नहीं था। लोग एक-दूसरे के साथ बहुत समय गलती से हाथ मिला बैठते और तुरंत ही जेब से दवाई की शीशी (सैनिटाइजर) निकालकर हाथ में मलने लगते। चेहरे पर आवरण (मॉस्क) लगाना अनिवार्य हो गया था। कुछ लोग तो अपने सिर में चिकित्सक द्वारा उपयोग की जाने वाली टोपी तथा जिसके सामने पारदर्शी ढाल थी,पहन कर ऑफिस आने लगे थे।
      एक दिन एक खबरी टाइप के कर्मचारी ने खबर दी कि ,’सर रामू को कोरोना नहीं हुआ है।’
मैंने बोला,’उसने तो इस संदर्भ में अपना प्रमाण-पत्र भेजा है।’
खबरी ने खबर दी,’सर आप भी बहुत भोले हैं,उसने यह प्रमाण-पत्र जुगाड़ से ली है और अपने घर में मजे कर रहा है। अगर आप चाहें तो मैं आप के लिए भी बनवा देता हूँ।’
मैंने उसे झिड़क तो दिया,पर मन ही मन सोच रहा था कि विचार बुरा नहीं है। इसके द्वारा मुझे भी १५ दिन की स-वेतन छुट्टी मिल जाएगी,पर यह इरादा तुरंत त्याग दिया।
       एक दिन मैंने नाई की दुकान पर अपने  बाल बनवाने के बाद मूँछ ठीक करने को कहा,तो नाई मूँछ ठीक करने लगा। मूँछ ठीक करते-करते एक तरफ की छोटी हो गई और दूसरी तरफ की बड़ी…। मेरे चेहरे पर मूँछ बहुत भद्दी लगने लगी थी,इसलिए मैंने नाई को डाँटते हुए पूरी मूँछ साफ कर देने को कहा। नाई समझदार था,बोला-‘भैया,पूरी  मूँछ साफ करने से चेहरा अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए मेरी मानें तो जैसी है,रहने दीजिए, और अभी मॉस्क लगाने के कारण किसी को भी पता नहीं चलेगा। २ दिन बाद जब मूँछ उग आएगी,तब आईएगा,मैं बढ़िया से सेट कर दूंगा।’
          चेहरे पर मॉस्क,सिर पर टोपी लगाने के बाद कोई भी पहचान में नहीं आ रहा था। फायदा भी हो रहा था,जो लोग उधार लिए थे,वे बड़े ही आत्मविश्वास के साथ चलने लगे क्योंकि उधार देने वाला उन्हें पहचान नहीं पा रहे थे। एक के घर पर बैंक का वसूली नोटिस आया था,पर वे नोटिस का निष्पादन नहीं कर पा रहे थे,क्योंकि इस व्यक्ति को पहले से पता चल गया था कि,बैंक वाले नोटिस चस्पा करने आ रहे हैं,तो उसने अपने घर के बाहर ‘कोरोना प्रभावित घर’ का कागज़ चस्पा कर दिया…। इस घटना के कुछ दिन बाद सरकार ने भी कोरोना काल में बैंक द्वारा वसूली पर अंकुश लगा दिया था।
          हमारे दफ्तर में एक अधिकारी तो पूरा का पूरा पी-पी-ई किट पहनकर दफ्तर आने लगे,साथ में उनके कमरे में कोई नहीं आए इसके लिए सदा लाल बत्ती जलाकर रखने लगे। कोई भी फ़ाइल या पत्र को ई-ऑफिस या मोबाइल में स्कैन कर व्हाट्स एप्प के माध्यम से ही स्वीकार करते थे,मानो जैसे  कोरोना का डर केवल उन्हें ही है और किसी को नहीं…।
       कुछ माह बाद मुझे एक आवश्यक बैठक के लिए बाहर जाना था। सभी रेल सेवाएं बाधित थी,इसलिए मैंने हवाई जहाज का टिकट ट्रैवल एजेंट के माध्यम से खरीदी। हवाई अड्डे में मुझसे प्रमाण-पत्र माँगा गया, तब अपने दोनों टीके लगने का प्रमाण-पत्र दिखाया,पर उस कर्मचारी ने उसे उपयुक्त दस्तावेज के रूप में मानने के लिए इंकार कर दिया। बोला,’मुझे २४ घंटे पहले का आरटीपीसीआर का कोरोना ऋणात्मक प्रमाण-पत्र चाहिए।’ मैं दुविधा में पड़ गया, यह बैठक मेरी कंपनी के लिए अति आवश्यक थी और मेरा जाना बेहद जरूरी था। मैंने ट्रैवल एजेंट को फोन कर बताया कि,आपने टिकट बनाने के पहले मुझे बताया क्यों नहीं कि मुझे हवाई जहाज में चढ़ने के पहले २४ घंटे पहले की आरटीपीसीआर का कोरोना ऋणात्मक प्रमाण-पत्र दिखाना अनिवार्य है।’
एजेंट बोला,’सर आप चिंता न करें। अभी आपका हवाईजहाज़ छोड़ने में १ घंटा बचा है,और आपको आधा घंटा पहले तक बोर्डिंग करने के लिए बुलाया जाएगा। मैं आपको १० से २० मिनट के भीतर प्रमाण-पत्र बनवाकर हवाई अड्डे में पहुँचा दूंगा।’
…और वाकई हैरानी की बात कि,उसने २०
मिनट के भीतर मेरा नाम,समय और तारीख लिखा हुआ प्रमाण पत्र मेरे पास पहुँचा दिया। मैं हैरान होकर उसे और अपने प्रमाण-पत्र को देखने लगा। एजेंट बोला,’सर आप ज्यादा सोचिए मत। यह दिखाकर जहाज मैं बैठ जाइए। अब आपको कोई भी नहीं रोक सकता है,और यह आपको अपने गंतव्य में भी काम आएगा।’
मैंने जब कितना लगेगा पूछा तो बोला,’ज्यादा नहीं हुआ। आप वापस आने के बाद मुझे दे दीजिएगा।’
यह प्रमाण-पत्र देखने के बाद मुझे हवाई जहाज में बिना किसी बाधा के पहुँचा दिया गया। मैं सोचने लग गया कि,सही में कोरोना किसी परिवार के लिए काल बन कर आया और कुछ लोगों ने उसी कोरोना के नाम से अपना कमाई कर ली।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

 

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