श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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देवन्ती नतमस्तक है प्रभु की रीत को,
श्रीकृष्ण जी की बनाई प्रेम प्रीत को।
अपनों से मिलना और बिछड़ जाना,
जब-जब याद आए तो, आँसू बहाना।
जा री कोयलिया जा, जा पिया संग जा,
यदि पीहर की याद आए, तब आना।
मिल-जुल कर घरौंदा, बनाना अपना,
सदा सुखमय जीवन, बिताना अपना।
जा री कोयलिया जा, साजन के घर जा,
तेरा घर सुखी हो, अम्मा को भूल जा।
बिटिया तो सबकी, होती ही है पराई,
ना रोना याद करके, पीहर की जुदाई।
देवी सीता भी, गई सासरे खुशहाल,
पर सासरे में कैसा-कैसा हुआ हाल!
दु:ख-सुख सहेली है यही समझ लेना,
मेरी प्यारी कोयलिया, तुम नहीं रोना।
जा री कोयलिया जा, जा अपने सासरे,
अम्मा अन्त क्षण तक रहेगी साथ रे।
मेरी अन्तिम विदाई को, जब सुन लेना,
आकर अम्मा को ‘गंगाजल’ पिला देना॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |