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घर की सदस्य ही होती

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

अपनी गाढ़ी कमाई से पिताजी लाए साइकिल
मेरा सातवें आसमान में उछलने लगा था दिल,
कलेवा बांध और उस पर टीका लगाया था माँ ने
नई साइकिल की बात को सबको बताया मैंने,
बहुत दिल के करीब मेरे,दास्तान-ए-साइकिल
आज भी याद करता पिता जी की वह साइकिल।

माँ तो पीछे बैठती थी,मेरी डंडे पर सीट छोटी
वह साइकिल मानो,घर की सदस्य ही होती,
फिर सामान रखने की भी बड़ी समस्या आई
पिताजी ने हैंडल पर आगे एक टोकरी लगवाई,
आई हमारे घर में,मेरी छोटी बहिन मुनिया
टोकरी में बैठकर,खुश होती थी नन्हीं गुड़िया।

यह साइकिल ही थी,हमारी स्कूल की सवारी
कोई होता बीमार तो बन जाती एंबुलेंस हमारी,
शाही रथ-सा आता इस पर बैठकर आनन्द
सवारी हमें कराते,पिताजी हँसते मंद-मंद
आफिस जाते थे इस पर पिताजी हाथ हिलाते,
शाम को घर आते थे इसकी घंटी को बजाते।

पिताजी जाते आफिस टिफिन लटका हर रोज
पर रविवार को तो मेरी ही,रहती थी मौज,
रविवार छुट्टी को मैं,देखता था यही पल
धोता था साइकिल को,खूब मसल-मसल,
फिर पोंछता था उसको साफ सूखे कपड़े से
छाँव में रखता बचा के,इसे धूप के थपेड़े से।

खाया-पीया और फिर,साइकिल ले खिसके
पाँव कैंची से बना,चलाते,हाथ सीट पर रखके,
कभी देख कर पंक्चर उदास होता और डरता
हाथ से खींच साइकिल दुकान का रूख करता,
पंक्चर निकलवा कर,लौट कर आता घर
पिताजी डाँटेंगे,बस यही लगता बहुत डर।

साइकिल भी मानो करती,उनसे ही शिकायत
पिताजी देते सावधानी से चलाने की हिदायत,
नौकरी तक इसने,पिताजी का निभाया साथ
रिटायरमेंट के बाद भी कहाँ छूटा यह साथ,
बड़े प्यार से यह अमानत मुझे है सम्भलाई
मैंने उनके प्रेम की,मन से दी खूब दुहाई।

उनकी मेहनत और आशीर्वाद से मैं हूँ सफल
साइकिल का महत्व याद आता है पल-पल,
सहेज रखी है साइकिल,जान अमूल्य धन
श्रद्धा से निहारता,जब याद करे पिता को मन।
रख देता हूँ साइकिल की सीट पर सर अपना,
आभास होता है उनकी ही गोद में है बचपना॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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