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मोटर-कार से कहीं ज्यादा

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

पूर्ण वयस्क
मैं बालक नौनिहाल,
उड़न तश्तरी-सा भरती उर रस
मन में उठते कई सवाल।
मेरे पिता जी की साईकिल…

मैं अदना-सा
साईकिल सर के पार,
चलाऊं कैसे,पूछूं खुद से
बन बालक,गूंजे वही ख्याल।
मेरे पिता जी की साईकिल…

स्टैण्ड खड़ी मैं चढ़-चढ़ जाऊं
उड़ने को घर से बाहर,
कब होऊंगा वयस्क साईकिल-सा
आते थे अक्सर ऐसे मुझे ख्याल।
मेरे पिता जी की साईकिल…

जान थी वो ज़हान के लिए
आन थी वो सम्मान लिए,
घड़ी,रेडियो और साईकिल अक्सर
शादी में मचाते थे खूब बवाल।
मेरे पिता जी की साईकिल…

लाइसेंसी थी
कागज़-पत्तर के साथ,
कोई कंडी पे,कोई डन्डी पे
लद जाते थे हम बालक तीन-चार।
मेरे पिता जी की साईकिल…

होता खूब सैर-सपाटा
और जाते थे मिलों पार,
मोटर कार से कहीं ज्यादा
रखते तो सब उसका खूब ख्याल।
पिता जी की साईकिल…

मेरे पिता जी की साईकिल का,
लुत्फ था कई गुना हजार।
आज भी आ जाती है खुशियाँ,
संग-संग यादों के आता है जब ख्याल।
मेरे पिता जी की साईकिल…॥

परिचय- संदीप धीमान का जन्म स्थान-हरिद्वार एवं जन्म तारीख १ मार्च १९७६ है। इनका साहित्यिक नाम ‘धीमान संदीप’ है। वर्तमान में जिला-चमोली (उत्तराखंड)स्थित जोशीमठ में बसे हुए हैं,जबकि स्थाई निवास हरिद्वार में है। भाषा ज्ञान हिन्दी एवं अंग्रेजी का है। उत्तराखंड निवासी श्री धीमान ने इंटरमीडिएट एवं डिप्लोमा इन फार्मेसी की शिक्षा प्राप्त की है। इनका कार्यक्षेत्र-स्वास्थ्य विभाग (उत्तराखंड)है। आप सामाजिक गतिविधि में मानव सेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता एवं ग़ज़ल है। आपकी रचनाएँ सांझा संग्रह सहित समाचार-पत्र में भी प्रकाशित हुई हैं। लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा व भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करना है। देश और हिन्दी भाषा के लिए विचार-‘सनातन संस्कृति और हिन्दी भाषा अतुलनीय है,जिसके माध्यम से हम अपने भाव अच्छे से प्रकट कर सकते हैं,क्योंकि हिंदी भाषा में उच्चारण का महत्व हृदय स्पर्शी है।

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