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दुनिया का सबसे ‘अमीर’ व्यक्ति

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

‘सोना….सोना..सुन,देख क्या वो ‘भंगार’ वाला आया है ?’ सीमा ने अपनी बेटी को आवाज लगाते हुए बोला।
‘क्या…मम्मी ? अभी तो बेचा था आपने,अब क्या देना ?’
‘अरे! यह पुरानी ‘साइकिल’ जगह घेर रही है! कब से…!
‘पर मम्मी यह तो ‘दादा जी’ की है। ‘दादी’ ने भी मना किया इसे बेचने को! फिर पापा भी तो…। यह कह कर सोना चुप हो गई।’
‘तो क्या जिंदगी भर रखेंगे इसे,देख,कितनी पुरानी हो गईं है! कोई चलाता भी नहीं,तेरे पापा ने तो कितने दिनों से इसे ध्यान से देखा भी नहीं होगा।’ दीपक कमरे में ‘लेपटॉप’ पर काम कर रहा था, अचानक उसके हाथ थम गए। वो सोचने लगा,हाँ सच में तो यादों को जीता था,फिर पिताजी की उन यादों को मैं कैसे भूल गया ?
इसी ‘साइकिल’ पर तो पहली बार पिताजी मुझे ‘शाला’ छोड़ने गए थे,इस पर बैठ कर। कितनी दफा ‘दशहरा’ पर ‘रावण’ को देखने जाता था। जब पिता आगे मुझे बैठा कर साइकिल चलाते थे,तब एक ‘राजकुमार’ जैसी ‘अनुभूति’ होती थी,और फिर ‘पिताजी’ भी शहर की कितनी ही छोटी-संकरी गलियों से मेरी पहचान कराते चलते।
हर रविवार ‘पिताजी’ ‘साईकिल’ को साफ करते,धो कर उसे चमकाते,मैं पूरे समय उनके आसपास रहता! कितने प्यार से सहेजते थे,वह अपनी ‘साइकिल’ को।
मेरे ‘बचपन’ की कितनी ही अनगिनत यादें इससे जुड़ी हुई है। ऐसा लगा अतीत फिसल कर ‘दीपक’ के सामने आ गया हो।
‘दीपक’ को आज बहुत अपराध-बोध महसूस हो रहा था। वो बाहर आया! ‘सीमा’ से बोला -‘रुको! क्या कर रही हो ?’
‘क्यों ? क्या हुआ तुम्हें,अचानक ‘भंगार’ में ‘साइकिल’ दे रही हूँ। ऐसे भी कुछ काम की नहीं।’ ‘सीमा’ ने लापरवाही से कहा…।
‘सुनो! रहने दो।’
‘दीपक’ ने ‘साइकिल’ को कपड़े से साफ किया! उसे हाथ में लेकर घर से बाहर चला गया।
‘सीमा’ हैरत से उसे जाते देखे जा रही थी।
‘सोना तेरे पापा को क्या हुआ ?’
‘रिंकू’ सोना का भाई,खाली जगह पर अपनी छोटी ‘साइकिल’ लगा रहा था। दो-तीन घण्टे के बाद ‘दीपक’ चमचमाती ‘साइकिल’ पर बैठ कर आता दिखाई दिया। ‘रिंकू’ दौड़ कर बाहर आ गया-”पापा’ आप ‘साइकिल’ पर! यह किसकी ‘साइकिल है ?’
‘तेरे ‘दादा जी’ की,ओर किसकी,ठीक करवाकर लाया हूँ। चल बैठ,आगे तुझे घुमाकर लाता हूँ!
‘माँ’ के चेहरे पर पड़ी ‘झुर्रियाँ’ मुस्कुरा उठीं, ‘आँखों’ की पोर भीग गईं। ‘सीमा’ को लगा,जैसे कुछ गलत होना टल गया! उसके चेहरे पर एक राहत भरा ‘सुकून’ पसर गया।
‘दीपक’ उन्हीं गलियारों से वापस गुजर रहा था, जिससे आज से तीस साल पहले वह अपने पिता के साथ जाता था। आज उसे लगा,वह दुनिया का सबसे ‘अमीर’ व्यक्ति है! ‘गैरेज’ में रखी ‘मर्सीडीज’ कार आज छोटी लग रही थी,क्योंकि ‘दीपक’ आज अपने ‘पिता’ को अपने अंदर महसूस कर रहा था। दीपक एक बार फिर इतने वर्षों बाद अपने बेफिक्र ‘बचपन’को…आज फिर से जी रहा था,पिता की साइकिल’ के साथ…।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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