कुल पृष्ठ दर्शन : 212

You are currently viewing चाँद-चाँदनी मिलन निशा

चाँद-चाँदनी मिलन निशा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************

चाँद-चाँदनी आज साथ में,
गलहर प्रिय करने उद्यत है।
इठलाती चन्दा बाँहों में,
रजनीश प्रिया आज मुदित है।

तारक नक्षत्र परिधान जड़ित,
चन्द्रप्रिया षोडशी सजी है।
प्रिया लजाती निशाचन्द्र से,
सोम सरस मधुपान मधुप है।

अश्क नैन भर शीतल किरणें,
प्रिय वियोग निशि कर मनुहर है।
श्याम निशा मन विलख विरह में,
चाँदनी सौतन लखि पीड़ है।

घायल चाँद आज है मदन से,
घायल चन्दा मदन बाण है।
भूला रजनी विधू प्रियतमा,
चन्द्रप्रभा मुस्कान प्राण है।

आज पूनम की अर्द्धरात्रि में,
मुदित चाँद मन मचल रहा है।
विहँस चाँदनी शशि देख दशा,
मुकुल रसाल मकरन्द हृदय है।

बिम्बाधर मुस्कान मनोहर,
नशा चाँदनी कुटिल नैन है।
लखि सोम प्रिया किसलय काया,
देवासुर नर कहाँ चैन है।

चांँद-चाँदनी मिलन निशा में,
मनोरम भँवरा मधुर गीत है।
आरत जुगनू दीप जलाए,
चाँदनी चांँद की नयी प्रीत है।

नीलाम्बर छायी प्रिया निशा,
तारक सज श्रंगार खड़ी है।
शरमाती लखि सजन चाँदनी,
सजनी मन अभिसार डरी है।

मन्द-मन्द मुस्कान चाँदनी,
कुपित निशा विधु मना रहा है।
देख रागिनी निशा चांँदनी,
हर्षित मन मकरन्द भरा है।

कुछ सुकून के पल जीऊँ मैं,
निशा समझ रजनीगंधा है।
साथ बिताए चिर लम्हों को,
जीवन भर फिर चन्द्रप्रभा है।

लूँ अंगराईयाँ बन हमदिल,
कशिश प्रेम अहसास युगल है।
बनी माधवी निशा चाँदनी,
सजन चाँद संग इतराती है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply