ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
*******************************************
‘राष्ट्रीय बेटी दिवस’ (२४ जनवरी)…
बिटिया ही होगी लगता था,
और खुशी से दिल चहकता था
जब तू कोख रही थी मेरी,
संदल-संदल-सा महकता था।
मुदित रही आने की आहट,
तेरी भीतर में सरसराहट
नन्हें हाथों को चूमा जब,
मन पात-सा लरजता था।
घर सुमन वाटिका अलबेली,
पुष्प तरह खिली नयी-नवेली
ममता की तैरती सिंधु में,
ममत्व मेघ सरस बरसता था।
चिड़िया तू आँगन की चुनचुन,
तेरे कदम में पायल रूनझुन
फुदक-फुदक कर चलती थी,
गृह कोना-कोना झनकता था।
मोती झरे हँसी में तेरी,
मुख कमल चूम तुझे सोती
रुदन रागिनी तेरी लगती,
जग गोद उठाने तरसता था।
रौशन-रौनक है तू घर की,
जीवन में जगमग उजाले की।
बेटी जल्दी बढ़ जाती है,
मेरा हृदय देख हरसता था।
डैने-वैने खोल पंखुड़ी,
फिर ससुराल उड़ी मेरी चिड़ी।
रखी अभी तक नन्हीं पैंजन,
पिंक रंग तुझपे सँवरता था॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।