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भारतीयता की संजीवनी बूंटी थे स्वामी विवेकानन्द

ललित गर्ग
दिल्ली

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स्वामी विवेकानन्द पुण्यतिथि-४ जुलाई विशेष

महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका मानवहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। स्वामी विवेकानंद हमारे ऐसे ही एक प्रकाश स्तंभ हैं,वे भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता,युगीन समस्याओं के समाधायक,अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे,जिन्होंने ४ जुलाई १९०२को महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए थे।
स्वामी विवेकानन्द का संन्यास एवं संतता संसार की चिन्ताओं से मुक्ति या पलायन नहीं था। वे अच्छे दार्शनिक,अध्येता,विचारक, समाज-सुधारक एवं प्राचीन परम्परा के भाष्यकार थे। वे काल के भाल पर कुंकुम उकेरने वाले सिद्धपुरुष,नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध,मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग प्रहरी,अध्यात्म दर्शन और संस्कृति को जीवंतता देने वाली संजीवनी बूटी,वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु हैं। वे अनावश्यक कर्मकांडों के विरुद्ध थे और हिन्दू उपासना को व्यर्थ के अनेक कृत्यों से मुक्त कराना चाहते थे। उन्होंने समाज की कपट वृत्ति,क्रूरता,आडम्बर और अनाचार की भर्त्सना करने में संकोच नहीं किया। इन्हीं कारण वे तत्कालीन युवा पीढ़ी के आकर्षण का केन्द्र बने,इसमें कोई शक नहीं कि वे आज भी अधिकांश युवाओं के आदर्श हैं। उनकी हमेशा यही शिक्षा रही कि आज के युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति की जरूरत है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत निर्मित करने की बात कर रहे हैं,उसका आधार स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं एवं प्रेरणाएं ही हैं।
स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में उनके प्रयासों एवं प्रस्तुति के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों को सुदृढ़ कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं। इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।
भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त संत एवं भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा पुरुष के रूप में माना जाता है। वे व्यवहार में जीने वाले गुरु भी थे। वे प्रज्ञा के पारगामी थे तो विनम्रता की बेमिसाल नजीर भी थे। वे करुणा के सागर थे तो प्रखर समाज सुधारक भी थे। आभिजात्य मुस्कानों के निधान, अतीन्द्रिय चेतना के धनी,प्रकृति में निहित गूढ़ रहस्यों को अनावृत्त करने में सतत् संलग्न ,समर्पण और पुरुषार्थ की मशाल,सादगी और सरलता से ओत-प्रोत,स्वामी विवेकानन्द का समग्र जीवन स्वयं एक प्रयोगशाला था,एक मिशन था,भारतीय संस्कृति के अभ्युदय का अनुष्ठान था।
स्वामी विवेकानन्द अतुलनीय सम्पदाओं के धनी थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क,पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया। स्वामी विवेकानन्द बड़े स्वप्नदृष्टा थे। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद न रहे। उन्होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को इसी रूप में रखा। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धान्त का जो आधार उन्होंने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूँढा जा सके। उन्होंने कहा था कि मुझे बहुत से युवा संन्यासी चाहिए जो भारत के ग्रामों में फैलकर देशवासियों की सेवा में खप जाएं। वे पुरोहितवाद,धार्मिक आडम्बरों,कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था।
स्वामी विवेकानन्द हर इंसान को शक्तिसम्पन्न मानते थे,विश्व का हर कण शक्ति का अक्षय भंडार है और असीम स्रोत है। विश्व का दीप वह बनता है जो इस सत्य को अभिव्यक्ति देता है और दूसरों में अनुभूति की क्षमता जागृत करता है। हर युग हजारों संभावनाओं को लिए हुए हमारे सामने प्रस्तुत होता है। आज का प्रबुद्ध मनुष्य प्राचीन मूल्यों के प्रति आस्थावान होकर नए मूल्यों की स्थापना के लिए कृत-संकल्प है। युग का प्रधान वही हो सकता है जो इस संकल्प की पूर्ति में योग दे सकता है। स्वामी विवेकानन्द विश्वदीप थे,युग नेतृत्व के सक्षम आधार थे एवं नये धर्म के प्रवर्तक थे।
स्वामी विवेकानन्द आध्यात्मिक जगत के विशुद्ध नेता थे। उन्होंने भौतिकता के वातावरण में अध्यात्म की लौ जलाकर उसे तेजस्वी बनाने का उल्लेखनीय उपक्रम किया था। यही कारण है कि उनका जीवन आध्यात्मिकता के साथ-साथ अनेक रचनात्मक एवं सृजनात्मक जीवनापयोगी कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ रहा। विलक्षण जीवन और विलक्षण कार्यों के माध्यम से उन्होंने अध्यात्म को एक नई पहचान दी। स्वामी विवेकानन्द पुण्यतिथि पर हार्दिक नमन।

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