श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…
श्री गुरुदेव का कहना है कि, माता-पिता तो जन्म देते हैं, पालन- पोषण करते हैं, और सभी जानते हैं कि भात, रोटी, दूध, मलाई, घी, शक्कर, नमक, जल, मेवा, मिष्ठान, फल खाकर बड़े हो गए, लेकिन इस पालन-पोषण के भीतर एक और भी अद्भुत अदृश्य रहस्य है, जो प्राण रखने में मदद करता है, वह है ‘हवा।’ हवा का आगमन होता है पेड़-पौधों से, जिसे भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज करके बताया है। पेड़-पौधे हम मनुष्यों के लिए बहुत जरूरी है, तभी तो पेड़ लगाया जाता है।
हमारे शहर, प्रखंड, पंचायत, ऑफिस, घर, बाहर, सड़कों के किनारे हर जगह पेड़-पौधे होना बहुत जरूरी है, नहीं तो मनुष्य को हवा मिलना मुश्किल है, क्योंकि हर प्रकार का भोजन खाने के बाद हवा बहुत जरूरी है। इसलिए, मानव को वृक्ष लगाना ही चाहिए। शुद्ध पर्यावरण से शुद्ध हवा मिलती है, जो शरीर के भीतर प्रवेश कर निरोगता और स्वच्छता प्रदान करती है। इससे हम अच्छा-बढ़िया महसूस करते हैं। ऐसे भी चिकित्सकों का कहना है कि, थोड़ा बाग-बगीचे में जाकर घूमना चाहिए, बीमार आदमी को शुद्ध हवा मिलना चाहिए, तो यदि हमारे यहाँ वृक्ष नहीं है तो शुद्ध हवा कहाँ से मिलेगी ? इसलिए वृक्ष तो लगाना जरूरी है ही। प्रत्येक इंसान यदि एक-एक वृक्ष लगाता है, तो समझिए कि शुद्ध हवा की कमी कभी नहीं रहेगी।
यह सच्ची बात है और सभी जानते हैं कि, बड़े-बुजुर्ग, चाहे स्त्री हो या पुरुष, अपने हम-उम्र के साथ किसी पेड़ के नीचे शाम की बेला में जाकर बैठते हैं एवं हवा का आनंद लेकर भीतर से बहुत खुशी महसूस करते हैं। इस तरह यह भी उनके लिए खुशहाली की एक दवा है, औषधि है।
कितने पेड़-पौधे हैं, जिससे जड़ी-बूटी भी बनाई जाती है। फलदार वृक्ष हैं तो फल को लेकर व्यापार करते हैं, उससे परिवार चलते हैं।
हम कहीं भी आते-जाते देखते हैं कि, सड़क किनारे दोनों तरफ वृक्ष है और वृक्षों में रंगीन कपड़ा बंधा हुआ होगा। वह कपड़ा महिलाएँ उसमें बांधती है और कहती हैं कि, यह मेरा भाई है। यदि मैं इसमें कपड़े को बांध दूंगी तो रक्षा सूत्र का काम करेगा, और कोई लकड़हारा इसे नहीं काटेगा, लेकिन लकड़हारा की भी तो दरकार है। वह अगर लकड़ी नहीं काटेगा तो, अपना परिवार कैसे चलाएगा ? इसलिए लकड़हारा उक्त कपड़ा बंधे हुए के साथ अन्य पेड़ को भी नहीं काटेगा, वरन जो जमीन पर पड़ा हुआ है या सूखी हुई लड़कियाँ हैं, उसे उठाकर बेचेगा और परिवार चलाएगा।
अब आ जाइए शमशान की बात पर तो यदि वृक्ष न रहा, पौधे ना रहे तो, शमशान में मृत आत्माओं को जलाने के लिए लकड़ी कहाँ से लाएंगे ? इसलिए, पर्यावरण दिवस पर ही नहीं, बल्कि हमेशा के लिए आओ मिलकर छायादार वृक्ष लगाने की प्रतिज्ञा करें। तभी हमारा जीवन सुखमयी होगा।
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |