कुल पृष्ठ दर्शन : 209

You are currently viewing जंगलों की बात

जंगलों की बात

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
*****************************************

आँधी-तूफानों के गहन थपेड़ों में,
हमने झेली सदा से हर पीड़ा है
हिले-डुले और टूटे, कभी बिखरे,
उठाया जीव संरक्षण का बीड़ा है।

हम धरती के वंशज धरती से उपजे,
कहां किसने हमको खुद से उपजाया है ?
जिए सदा से अम्बर पिता की छत के नीचे,
पालती पोषती सदा से हमें हमारी जाया है।

न जाने क्यों नर नृशंस ने संघारा फिर हमको ?
हमने आखिर उसका कब और क्या खाया है ?
उल्टा उसने ही है हमको हमेशा लूटा-खसोटा,
फल, छाया, साँसें ली लकड़ी से घर बनाया है।

अंधा मानुष नासमझी में जाने-अनजाने ही,
क्यों मारता खुद के ही पाँव में कुल्हाड़ी है।
अपने ही प्राणदाता को जो नर मारे-काटे,
वह मंद बुद्धि है, न के कोई बड़ा खिलाड़ी है॥

Leave a Reply