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‘जल-संकट’ बने समाधान का माध्यम

ललित गर्ग

दिल्ली
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देश में जैसे-जैसे गर्मी प्रचंड होती जा रही है, जल संकट की खबरें भी डराने लगी है। राजस्थान, दिल्ली, कर्नाटक आदि प्रांतों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है। मध्यप्रदेश के छतरपुर सहित ऐसे हजारों गाँव हैं, जहां पानी के अभाव में जीवन संकट में है। भारत अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल-संकट का सामना कर रहा है। लोकसभा चुनाव अन्तिम चरण की ओर अग्रसर है, आज हमारे उम्मीदवार मुफ्त बिजली और पानी देने का वादा करके चुनाव तो जीत जाते हैं, लेकिन भारत में जिस तरह संकट गंभीर हो रहा है, उससे उनकी कथनी और करनी की असमानता ही बार-बार उजागर होती है। जल-संकट चरम पराकाष्ठा पर है, एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब पैसा देकर भी पानी खरीदना मुश्किल हो जाएगा। जल-संकट चुनाव जीतने एवं राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा तो है, लेकिन समाधान का नहीं। जल-संकट ने राजनीतिक रंग तो ले लिया है, विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं और पिस रहा आम आदमी है। पैसे वालों के लिए पानी इतनी बड़ी समस्या नहीं है, लेकिन जिनके पास पैसों की किल्लत है, वे पानी की किल्लत से भी जूझ रहे हैं क्योंकि टैंकर का पानी महंगा है।

वास्तव में लगातार बढ़ती गर्मी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। इसके गंभीर परिणामों के चलते राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पानी की कमी ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। इसका असर न केवल कृषि गतिविधियों पर पड़ रहा है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम आँकड़े भारत में बढ़ते संकट की गंभीरता को ही दर्शाते हैं। यह आँकड़े देश भर के जलाशयों के स्तर में आई चिंताजनक गिरावट की तस्वीर उकेरते हैं। देश में प्रमुख जलाशयों में उपलब्ध पानी में उनकी भंडारण क्षमता के अनुपात में ३० प्रतिशत की गिरावट आई है, जो हाल के वर्षों की तुलना में बड़ी है। जो सूखे जैसी स्थिति की ओर इशारा करती है। महर-खुवा गाँव (मप्र) की ही तरह अलवर जिले के कई गाँव में लोग १२ महीने ही भीषण संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें पानी का स्त्रोत है ही नहीं।
भारत के गाँवों में रहनेवाले करीब २० करोड़ परिवारों के घरों में नल नहीं है। इन परिवारों की औरतें पैदल चलकर घंटों कतार में लगकर पानी इकट्ठा करती हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए मोदी सरकार ने २०१९ में हर घर में नल से पानी पहुंचाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ की घोषणा की। सरकार का दावा है कि, अब तक १० करोड़ घरों में नल लग गए हैं, लेकिन अभी भी हजारों गाँवों में जल-संकट बड़ी समस्या बनी हुई है। एक नागरिक के रूप में हम आत्ममंथन करें कि, बढ़ते जल-संकट के समाधान की दिशा में हमने क्या कदम उठाए ? क्या पानी की फिजूलखर्ची को कम करने का कोई संकल्प लिया ? गर्मी के आने पर हम हाय-हाय तो करने लगते हैं, लेकिन कभी हमने विचार किया कि, हम इस स्थिति को दूर करने के लिए क्या योगदान देते हैं ? क्या हम पौधा-रोपण की ईमानदार कोशिश करते हैं ? हम जल के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करते हैं ? क्या वर्षा जल सहेजने का प्रयास करते हैं, ताकि तापमान व भूगर्भीय जल के संरक्षण में मदद मिले ?
सच कहें तो, हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुरूप जैसी जीवन-शैली विकसित की थी, वह हमें कुदरत के चरम से बचाती थी। राजस्थान में जल-संकट की संभावनाओं को देखते हुए आम नागरिक खुद के स्तर पर व्यापक प्रयत्न करता है। रेगिस्तान से जुड़े अनेक गाँवों एवं शहरों में बने या बनने वाले मकानों में कुआँ जरूर होता है, जहां बरसात के पानी को एकत्र किया जाता है। इसलिए गाँव के स्तर पर लोगों द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिए। उचित रख-रखाव के साथ छोटे-बड़े तालाबों द्वारा भी बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। हम महसूस करें कि, बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों में बढ़ता दबाव भी तापमान की वृद्धि एवं जल-संकट का कारण है। बड़ी विकास परियोजनाओं व खनन के लिए जिस तरह जंगलों को उजाड़ा गया, उसका खामियाजा हमें और आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा। विलासिता के साधनों, वातानुकूलन के मोह, वाटर-पार्कों एवं होटलों में पानी के अपव्यय को रोकने के लिए जन-चेतना की अपेक्षा है।
हमारे पुरखों के ज्ञान अनुसार एक व्यक्ति के रूप में हम बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे जल-संकट से खुद व समाज को सुरक्षित कर सकते हैं। सरकार व समाज मिलकर जल-संकट का मुकाबला कर सकते हैं। भारत में जल-संकट की समस्या से निपटने के लिए प्राचीन समय से जो प्रयत्न किए गए हैं, वे दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं।

नीति आयोग ने कहा है,- ‘अभी ६० करोड़ भारतीय गंभीरतम जल संकट का सामना कर रहे हैं और २ लाख लोग स्वच्छ पानी तक पर्याप्त पहुँच न होने के चलते हर साल अपनी जान गंवा देते हैं।’ इन जटिल एवं विकराल स्थितियों एवं डरावने तथ्यों के बावजूद हम पानी का इस्तेमाल करते हुए पानी की बचत के बारे में जरा भी नहीं सोचते, परिणामस्वरूप अधिकांश जगहों पर जल संकट की स्थिति है।