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जहां माँ का कोई अधिमान नहीं

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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हृदय विक्षिप्त-सा होता है,
आज भी अंग्रेजी की गुलामी से
सात दशक में भी ये डरे नहीं,
अपनी भाषा की बदनामी से।

चले बनाने अंग्रेजी को माध्यम,
हिंद में प्रारंभिक शिक्षा का
गुणवत्ता आएगी कहते हैं इससे,
जवाब नहीं इनकी इच्छा का।

हिन्दी में समझ न पाए विषय जो,
अंग्रजी में क्या समझेगा ?
ये लगाए बैठे हैं उम्मीद कि अब,
सूरज पश्चिम से दमकेगा।

नादानी-नासमझी में कहीं हम,
अपनी माँ को ही न खो डालें
अंधाधुनिकता के अंधानुकरण में,
है सपने बेढंग से जो पाले।

अंग्रेजी के हैं विरोधी कहाँ हम ?
हनन हिन्दी का भी मंजूर नहीं
सरकारी शिक्षा में प्रयोगों का दोष है सब,
बच्चों का कसूर नहीं।

अभिभावक न जाते निजी में यूँ ही,
सरकारी में तो परेशानी है
अंग्रेजी माध्यम के झांसे से वे लौटेंगे,
हरकत यह बचकानी है।

अध्यापक दो कक्षाओं को पूरे,
गैर शैक्षिक कर्तव्यों से मुक्ति दो
प्रवेश बढ़ेगा शत-? प्रतिशत,
देखना गुणवत्ता शिक्षा की युक्ति को।

विषय ठीक है अंग्रेजी एक पर,
माध्यम तो फिर कोरा रटा है।
समझ न होगी जब बच्चे को कुछ,
फिर तो शिक्षा का भट्ठा है।

कहाँ ले चले हैं देश को दुनिया में,
माँ छोड़ मौसी के सहारे से ?
मातृभाषा के सूरज से छुपा कर,
क्यों ले चले तुम अंधियारे से ?

मातृ भाषा का दूध पीने दो,
देश के नन्हें-मुन्ने सब बच्चों को
अपनी संस्कृति की गोद में जीने दो,
इन मासूम दिल सच्चों को।

पूर्वज लड़े पहचान की खातिर,
बलिदान दे कर अंग्रेज भगाए थे
अब अंग्रेजी न कब्जाए भारत को,
तब व्यापार करने आए थे।

इतना भी स्वार्थ अच्छा नहीं कि,
माँ की ममता ही भुला डाले।
मल-मूत्र से माँ ही बचाती है,
नींद में मौसी उसी में सुला डाले।

रहने का मन नहीं करता है वहाँ,
जहां माँ का कोई अधिमान नहीं।
माँ का दूध पीने से न देखा होता,
मौसी का भी अपमान नहीं॥